Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 49
________________ आसायणतित्तीसं ३३ वीरियायारस्स तिगमगृहंतो३ । एवं सूरिगुणाणं छत्तीसं वणियं सच्च(४३ )॥१३८॥ पणवीसं भावणाई भाविल्लो २५ पंचमहब्वयाईणं । इक्कारसंगधारी ११ सूरिगुणा इंति छत्तीस (४४) ॥१३९॥ तह बारसंगधारी पइण्णदसय छछेय चउमूलं । नंदी अणुओगधरो अरागदोसेहिं छत्तीस (४५) ॥१४०॥ नाणमि य दंसण मि य चरणमि तवमि तहय वीरियं मि । करणकारणाणुमइमेएहि हुंति पण्णरसं १५ ॥१४१॥ द्रसविहसामायारीकुसलो १० पणसमिय ५ पंचसझाओ ५ । अपमत्तेग १ गुणेहि कुणइ सया सूरि छत्तीस (४६) ॥१४२॥ अठ्ठ य पवयणमायाओ८ सुहदुहसेज्जाण अठ्ठ ८ तिविहसच्च३। छप्भासा ६ झाण दुर्ग २ सत्तविभंग ७ दुधम्म २ छत्तीसं (४७)॥१४३॥ इच्वाइअणेगगुणगण-सयकलिओ सुविहियाण हियजणओ। आयरिओ सुपसत्थो गच्छे मेढीसमो भणिओ ॥१४४॥ मूलुत्तरगुणसुद्धो सदब्वभावहिं पवयणुक्वरिसो। होइ गुरुगीयत्यो उज्जुत्तो सारणाईसु ॥१४५॥ सो जिणसासणपासायपीढपायारसंनिहो भणिओ। तस्स कुतित्थिगयेहि हवइ न लहुयत्तणं किमवि ॥१४६॥ सो भावसूरि तित्थयर-तुल्लो जो जिणभयं पयासेइ । जिणमयमइक्कमंतो सो काउरिसो न सप्पुरिसो ॥१४७॥ हिंडइ नो भिस्काए तित्थयरो तित्थभावसंपत्तो। तहिं जाइन भिख्कठा सूरी वत्थासणाईणं ॥१४८॥ जं समए जावईयं पवयणसारं लहेइ तं सव्वं । अरिहमिव तहावाई सुद्धं निस्संसओ सध्वं ॥१४९॥ जह अरिहा ओसरणे परिसाइ मझटिओ पढमजामे । वस्काणइ सो अण्णं सूरी वि तहा न अन्नत्य ॥१५॥ जह तित्थगरस्साणा अलंधणिज्जा तहा य सूरीणं । न य मंडलिए भुंज तित्थयरो तहाय आयरिओ ॥१५॥ SECCCCCCCCk Jain Education rational For Private & Personal use only w el elibrary.org

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