Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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दवाईचउविहेसु परिग्गहेसु न करेइ पडिबंधं । बंदणपूयणसक्कारे सरिसो माणावमाणेसु ॥८३।। दवाईचउविहेहिं असणाईसु चउबिहेसु सब्वेसु । नो संनिहिपबंधं कुव्वइ भिस्कू वि कारणओ ॥४॥ निच्च सझायरया सुहझाणा एवमाइगुणकलिया। विहरंति जत्थ निययं तं मुणिगच्छं सुविहियं च ॥८५॥ जत्थ गणे आयरिओ उवझाया थिरपवत्तया मुणिणो । रायणिया पंचावि हु गुणरयणविभूसिया गच्छे ॥८६॥ कत्थ अम्हारिसा जीवा दूसमादोसदूसिया । हा अणाहा कहं हुंता न हुँतो जइ जिणागमो ॥८॥ पवयणरयणनिहाणा सूरिणो जत्थ नायगा भणिया । संपइ सव्वं धम्मं तयहिठ्ठाणं जओ भणियं ॥४८॥ कइयावि जिणवरिंदा पत्ता अयरामरं पहं दाउं । आयरिएहि पवयणं धारिज्जइ संपयं सयलं ॥८९।। पडिरूवाई चउदस खंतिमाइयदसविहो धम्मो । बारस य भावणाओ सूरिगुणा हुंति छत्तीसं (१)॥९॥ पंचिंदियसंवरणो तह नवविहबंभचेरगुत्तिधरो । तह चत्तचउकसाओ अट्ठारसगुणेहिं संजुत्तो ॥११॥ पंचमहव्वयजुत्तो पंचविहायारपालणसमत्थो। पंचसमिइतिगुत्ति-गुत्तो छत्तीसगुणकलिओ (२) ॥१२॥ विहिपडिवण्णचरित्तो गीयत्थो वच्छलो सुसीलो य । सेवियगुरुकुलवासो अणुयत्तिपरो गुरू भणिओ ॥१३॥ देसकुलजाईस्वी संघयणी धिइजुओ अणासंसी । अविकंथणो अमाई थिरपरिवाडी गहियवक्को ॥१४॥ जियपरिसो जियनिहो मझत्थो देसकालभावन्नू । आसण्णलद्धपइभो नाणाविहदेसभासण्णू ॥९५॥ पंचविहे आयारे जुत्तो सुत्तत्य तदुभयविहिन्नू । आहरणहेउउवणयणयणिउणो गाहणाकुसलो ॥१६॥ ससमयपरसमयविऊ गंभीरो दित्तिभं सिवो सोमो । गुणसयकलिओ एसो पवयणउवएसओ सुगुरू ॥९॥
RRRRR२८९
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