Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
View full book text
________________
संबोध ॥१९॥
66
पत्तं १ पत्ताबंधो २ पायठवणं ३ च पायकेंसरिया ४। पडलाई ५ रयत्ताणं ६ गुच्छओ ७ पायनिज्जोओ ॥१८॥ तिन्नेव य पंच्छागा १० रयहरणं ११ चेत्र मुहपत्ती १२ । तत्तो मत्तो य १३ खलु चउदसमो चोलपट्टो य १४॥१९॥ दव्वाइविभेएहिं जाणअजाणगदुब्बियहिं । पवयणमग्गं विसुद्धं तच्चं मग्गं परूवेइ ॥२०॥ इच्चाइगुणो साहू दबओ सो जणाण धम्मकरो । भावेण य मूलुत्तर-गुणसुतिमकसायाओ ॥२१॥ अप्पमत्तपमत्तगुण-ठाणठिओ पंचमहब्वयसमेओ। चरणकरणाइगुणगण-सयकलिओ नाणबलिओ य ॥२२॥ पाणिवह मुसावाए अदत्तमेहुणपरिग्गहे चैव । एयाई हुँति पंच उ महव्वयाई जईणं तु ॥२३॥
भू१ जल २ जलणा ३ निल ४ वण ५-बि ६ति ७ चउ८ पंचिदिएहिं ९ नव जीवा ॥
मणवयणकायगुणिया हवंति ते सत्तवीसंति ॥२४॥ एक्कासीइ य करण-कारणाणुमईहिं ताडिया होइ । सच्चिय तिकालगुणिया दुन्नि सया हुँति तेयाला ॥२५॥ जयणा य धम्मजणणी जयणा धम्मस्स पालणी चेव । तववृढिकरी जयणां एगंतसुहावहा जयणा ॥२६॥ कंचणमणिसोवाणं थंभसहस्सूसियं सुवण्णतलं । जो कारिज्जइ जिणहरं तओ वि तवसंजमो अहिओ ॥२७॥ जो य अहिंसाधम्मं नाऊण य जीवमेयसंगहणं । चेयणजुत्तो एगो १ दुविहा संसारे १ सिद्धा य २ ॥२८॥
तसथावरा वि दुविहा इत्थी १ पुं२ संढ ३ मेयओ तिविहा। भर १ तिरि २ नरय ३ सुरा ४ चउ अहवा वि अवेअगा चउरो ॥२९॥ इग १ बि २ ति ३ चउ ४ पंचिंदिय ५-रूवा पंचविह अणिदिएहि छहा ॥६।
LA6A-966-
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org |

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130