Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ - 'एगागित्थम्भमणं सव्वत्थ वि अगणिऊण पज्जाओ। सवे अहमिदधम्मा नियमाणं परिभवो ण्णस्स ॥१४॥ नियकज्जे मिउवयणा कयकिच्चे फरुसवयणभासिल्ला । अइमूढगूढहियया चुण्णकणगुब्व रंगकरा ॥१४८॥ अप्पंमि चरणधम्मं ठावंता संपयंमि समयंमि । विसयकसायधणंजय-जालाजलिया वि ते जाण ॥१४९॥ संजलंमि कसाए चरणं कहियं जिणेहिं नन्नत्थ । पायं अभिण्णगंठि-प्पएसिणो ते मुणेयव्वा ॥१५०॥ वत्थिय वायपुण्णो अत्तकरिसेण जहा तहा लवइ । न वि सेवइ गीयत्थं वत्थिव्य अदंसणिज्जो सो॥१५॥ थद्धो निविण्णाणो परिभवइ जिणमयं अयाणतो । तिणमिव मन्नइ भुवणं न य पिच्छइ किंचि अप्पसमं ॥१५२॥ बहु मन्नइ गिहिलोयं गिहिणो संजमसहित्ति भणति । नय आणं मन्नंति गुरूण गुरुनाणजुत्ताणं ॥१५३॥ गाम देसं च कुलं सदासदी ममत्तए कुणइ । वसहिषरुल्लोयणाइ नंदिधणाई पवदंति ॥१५४॥ वंदणनमंसणाइ कारंति परेसि साहुबुद्धीए । नय अप्पणो करेंति सिढिलायारा तहा एए ॥१५५॥ लोए इइसाहुवाया धम्मपरा धम्मदंसिणो रम्मा । परमंता निधम्मा निम्मेरा नडयपेडनिहा ॥१५६॥ दसमगमच्छरमिणं असाहुणो साहुणुव्व पुज्जति । होहंति तप्पसाया दुभिख्कदरिद्दडमरगणा ॥१५७॥ जे संकिलिचित्ता माइठाणंमि निच्चतल्लिच्छा । आजीवगभयवस्था मूढा नो साहुणो हुंति ॥१५८॥ । मूलगुणविप्पमुक्का छक्कायरिऊ असंजया पायं । गुणिमुणिपओसजुत्ता विठ्ठाणायारमूरिमुहा ॥१५९॥ सुसमायारीब्भठ्ठा नियडिपरा भत्तलोयथुइदस्का । पच्छन्नसब्वसंगह-कारिणो सव्वभुज्जपरा ॥१६०॥ सुद्धं सुसाहुधम्म अंगे न धरेइ नो पसंसेइ । सद्धागुणेहि रहिया परमत्यनुया पमायपरी ॥१६॥ STRASSE SASS Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130