Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
View full book text
________________
केससरीरविभूसण १९ छत्ता २० सि २१ किरीड २२ चमरधरणं २३ च ।
धरण २४ जुवइहिं हास-रस २५ खिडप्पसंगाय २६ ॥ २५० ॥ अकयमुहकोस २७ मलिणं-गवत्थ २८ जिणपूयणापवित्तीए। मणसो अणेगयत्तं २९ सचित्तदवियाण अविमुयणं ३०॥२५१॥ अच्चित्तदव्वअविउज्जणं च ३१ तहणेगसाडियत्त ३२ मवि। जिणदंसणे अणंजलि ३३ जिणमि दिलुमि य अपूया ३४॥२५२॥ अहवा अणिकुसुमेहि पूयणं ३५ तह अणायरपवित्ती ३६। जिणपडिणीय अणिवारण ३७ चेइयदव्वस्सुवेहणमो ३८॥२५३॥ सइसामथिओवाहणह ३९ पुवंचियवंदणाइपडणं च ४० । जिणभवणमि ठियाणं चालीसा सायणा एए ॥ २५४ ॥ तम्हा सबप्पयारेणा-सायणा वज्जणं जिणिदाणं । एसो परमो णेओ विहिपको सम्मदिठ्ठीणं ॥२५५।।। भत्ति १ बहुमाणो २ वण्ण-संजलण ३ आसायणाइ परिहारो ४। पडिणीयसंगवज्जण ५ सइ सामत्थे तयुज्झणणं६॥२५६॥ विहिजुंजण ७ सम्मठावण-मवहिच्चायण विहीण पडिसेवा ८ । सद्धाइयअडगुण-जुत्तो संपुण्णविहिजुत्तो ॥ २५७ ।। * थोवं कयं सुपत्थं नीरोगं कुणइ जह सुविसुद्धं । तह विहिणाणुठाणं विहियं भाविज्ज अमियफलं ।। २५८ ॥ जम्हाणुबंधहिंसा सम्मद्दिष्ठीण तो हविज्जत्थ । तह तह हेउवओगा अविहीए हुज्ज फलचित्ता ।। २५९ ॥ दुष्ठाणुओगहरणी करणी सम्मत्ततच्चफलजणणी । जा जा सरूवहिंसा गुणसेणीदलाणनिठ्ठावणी ॥२६० ॥ णिच्छयववहारगया भव्वजणाणं चरित्तजुत्ताणं । मणपल्हायणजणणी हिंसाऽहिंसा विणिद्दिठ्ठा ॥ २६१ ॥ . जोयकिरियाफलाणं वंचणया इत्थ होइ किरियाए। चउगइगमणपवट्टण-किरियाऽहिंसा वि सा हिंसा ॥ २६२ ॥ एवं सव्वष्ठाणे सदणुठ्ठाणे तहा विसेसेण । दव्वत्थयभावत्यय-करणं चरणाईयाणं च ॥ २६३ ॥
6--
Jain Education
national
For Private & Personal use only
walkinelibrary.org |

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130