Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 22
________________ संबोध प्रकरणम्: ॥१०॥ जीयं धम्मो कप्पो भत्ती सव्वत्थ उचियपडिवत्ती। जिणपडिमाणं पूया विण्णेया परित्तभवजणणी ॥ २६४ ॥ चेइयपडिमाविबं आणा संसारपयणुकाऽऽरुग्गा । तह बोहिलाहजणणी अमियफला अमयकिरियाभा ॥२६५ ॥ दव्वत्थयभावत्थय-इन्चाइमेयओ मुणेयव्वा । पूयापयपज्जाया सुहजोयफलाण संपुन्ना ॥ २६६ ॥ चरिमावत्तपबत्ते जीवे मग्गाणुसारणी किरिया । हुज्जा जत्थ फलढ्ढा तत्थिमा पवरपुण्णफला ॥ २६७ ॥ संपत्ते सम्मत्ते तत्थेमा बोहिसाहिणी परमा । मणपल्हायणजणणी अगण्णकारुण्णणिहितुल्ला ॥ २६८ ॥ कल्लाणफलोवेया चरित्तभावमि अत्तभावपरा । पवयणसारा परमा भावत्थयनामनिम्माणा ॥ २६९ ॥ जत्थ गुणे जावईया जोया जुंजिज्जए गुणद्वेहिं । अब्भत्थजोगजुत्ता गुरुगुरुगुणगण(झ)भूया ॥ २७० ।। भावत्थओ मुणीणं जहुत्तआणापराण भावणया । दव्वत्थओवि पढमं गिहीण भावत्थओ देसा ॥२७१॥ भावच्चणमुग्गविहारया य दव्वच्चणं तु जिणपूया । भावच्चणाउ भठ्ठो हविज्ज दब्बच्चणुज्जुत्तो ॥२७२॥ जो पुण मुणिवेसधरो केवललिंगेण वित्तिकप्पपरो। दव्वत्थओ न तस्स य उचिओ खिसा पवयणस्स ॥२७३।। सामायारिं कप्पं मग्गं पवयणपभावणाइयं । तेहिं सव्वं धणियं लूसियं बोहिवररयणं ॥२७४॥ जइ चरित्रं नो सक्को सुद्धं जइलिंगमहवपूयट्ठी। तो गिहिलिंगं गिण्हे नो लिंगी पूयणारिहओ ॥२७५॥ लिंगीहिं परिग्गहीयं जइ जिणचेइयमवज्जमहसाहू । तस्सुद्धरणाइकए दाविज्जोणेवउवएसो ॥२७६॥ चेइयवासिविसिटुं जिणाउलं जइवि तहवि सावज्जं । कमलप्पहेण तम्हा आयरिणा इत्थ दिलुतं ॥२७७॥ जा जिणभत्ती किज्जइ अणज्जलिंगीण सावइज्जेहिं । पडिमा पासाइया बोहिमलयद्दमग्गिसमा ॥२८॥ १०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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