Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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संबोध: ॥ १२ ॥
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जम्हा गणहरवणं जिगाण पडिमा जिणं जिर्णिदित्ति । सख्कं अरिहंतित्ति त-प्पुरओराहणा वृत्ता ॥ ३२४ ॥ सावज्जा निरवज्जा किरिया अझप्पजोगओ हुंति । भिच्छत्तपराण पढमा इयराणं होइ इयरा य ॥ ३२५ ॥ 'जलगलणदाणविणओ-वयारमेएहिं धम्मजुत्ताणं । आहारविवहारनई - संतरणाइ पवत्ताणं ॥ ३२६ ॥ आणाविणओ परमं मुख्कंगं पवयणे जओ भणिओ । सव्वत्थ विहियपरमत्थ-सारेहिं परमगुरुएहिं . ॥ ३२७॥ इयसो रूढो जिदिपडिमित्ति अत्थओ दिठ्ठो । नो कत्थवि नाणित्ति निरुत्तियं चेइसद्दस्स ॥ ३२८ ॥ चिइ संन्नाणं सन्नि सम्मं नाणं तु चेइयठस्स । चिणुइपुठिनीणेइ चिइत्ति अत्यस्स चिइसद्दे ॥ ३२९ ॥ तुम्हा चेइयविणओ सम्मं जो जुंजए पसत्थमणे । आसायणा तयंगस्स वज्जणा परमगुणहेऊ ॥ ३३० ॥ नामाइयनिख्वा सुद्धा सुद्धेहिं अट्ठहा चउहा । पढमपए दुह चउहा विणओ तस्सेव कायव्वा ॥३३१॥ तह्मा चेइयदव्वं बुट्टिगयं जिणपयं खु भत्तीए । विहिपुव्वं चिय वृत्तं पभावगं दंसणाईणं ॥ ३३२ ॥ तस्सासायणदोसा विसेसओ पवयणे जओ भणिया । तं नाऊण महप्पा संरख्कड़ तं जहासत्ती ॥ ३३३॥ संकासविजयतक्कर- धणसिरिधणदेवनामओ सढ्ढा । भख्कवख्कणदोहण - चढणपभिईहि संजाया ॥ ३३४ ॥ सव्वं सरीरकठ्ठे विहलं उच्छूफलं व जीवाणं । जिणपडिमा भत्तीए सुण्णं सहलं पुणो तीए ॥ ३३५ ॥ ॥ इति देवस्वरूपाधिकारः ॥
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प्रकरणम्ः
१२ ।
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