Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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पुंच्छंताणं धम्मं तं पिअनपरिकिओ समत्थाणं । आहारतित्तिबुद्धा जे उम्मग्गं उवइति ॥ २८ ॥ सुगई हणंति तेसि धम्मियजणनिंदणं करेमाणा । आहारपसंसासु य निति जणं दुग्गई बहुअं ॥ २९ ॥ दगपाणं पुष्पफलं अणेसणिज्जं गिहत्यकिचाइं । अजया पडिसेवंति जइवेसविडंबगा नवरं ||३०|| जे वरसरणपसत्ता छक्कायरिऊ असंजया अजया । नवरं मुत्तूण घरं घरसंकमणं कयं तेहि ॥ ३१ ॥ बाया मेसणाओ न रख्कइ द्वाइसिज्जपिंडं च । आहारेइ अभिरकं विगईओ सनिंहिं खाइ ||३२|| सूरप्पमाणभोई आहारेई अभिस्कमाहारं । न य मंडलिए भुंजइ न य भिरकं हिंडए अलसो ॥३३॥ कीवो न कुणइ लोयं लज्जइ पडिमाइ जल्लभुवणेइ । सोवाहणो य हिडई बंधइ कडिपट्टयमकज्जे ॥ ३४॥ सोव य सव्वराई नसमचेयणो न वा झरइ । न पमज्जेतो पविसइ निसिही आवस्सियं न करे || ३५ ॥ सव्वं थोवं उवहिं न पेहए न य करेइ सझायं । निञ्चमवझाणरओ न य पेहपमज्जणासीलो ॥ ३६ ॥ एयारिसा कुसीला हिठ्ठा पंचावि मुणिवराणं च । न य संगो कायव्वो तेर्सि धम्मभिव्वेहि ॥ ३७ ॥ आयरिय १ उवझाया २ पवत्ति ३ थेरा वि साहुणो अहवा । जत्थ अणायारपरा सो गच्छो इत्थ मुत्तव्वो ॥ ३८ ॥ जत्थ य गुणिप्पओसं वहति उम्मग्गदेसणारत्ता । सो य अगच्छो गच्छो संजमकामीहिं मुत्तव्वो ॥३९॥ वयछकं कायछक्कमकप्पो गिहिभायणं । पलियंक निसिज्जा य सिणाणं सोभवज्जणं ॥ ४० ॥
अठ्ठारसदोसा जत्थ- निसेवंति साहुवेसधरा । धम्मधणहरणपरमं तं पल्लि जाण न हु गच्छं ॥ ४१ ॥ संखपिमुकिचे सरसाहारं खु जे पगिण्हंति । भत्तठ्ठे धुव्वंति वणीमगा ते वि न हु मुणिणो ॥ ४२ ॥
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