Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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संबोध
प्रकरण
जोइसनिमित्तअख्करमूइकम्माइं जे पउंअंति । अत्तठियमुहहेउं धम्मपिसाया न ते मुणिणो ॥४३॥ रणो आणाभंगे इक्कु चिय होइ निगाहो लोएं। सव्वष्णूआणभंगे अणेतसों निग्गहं लहइ ॥४४॥ जत्थ य मुणिणो कपवि-कपाई कुवंति निच्चमुझट्ट।। तं गच्छं गुणसायरविसं व दूरं परिहरिज्जा ॥४५।। वत्थाई विविहवण्णाई अइसियसद्दाइं धूववासाइ । पहिरिज्जइ जत्थ गणे तं गच्छ मूलगुणमुक्कं ॥४६॥ घट्टा मट्ठा पंडर-वसणा दबदवचरा पमत्तमणा । उहामा सूयलुव्व निरंकुसा दुष्ठनागुब्व ॥४७॥ जत्थ य विकहाइपरा कोउहला दवलिंगिणो कुरा । निम्मेरा निल्लज्जा तं गच्छं जाण गुणभट्ट ॥४८॥ अन्नत्थियवसहा इव पुरओ गायंति जत्थ महिलाणं । जत्थ जयारमयारं भणंति आलं सयं दित्ति ॥४९॥ जत्थ य अज्जालद्धं पडिग्गहमाई व विविहमुवगरणं । पडिभुजई साहहिं तं गोयम केरिसं गच्छं ॥५०॥ वजह अप्पमत्ता अज्जासंसग्गिअग्गिविससरिसा । अजाणुचरो साहू लहइ अकीर्ति खु अचिरेण ॥५१॥ जत्थ हिरण्णसुवणं हत्येण पराणगं पि नो छिप्पे । कारणसमल्लियं पि हु गोयम गच्छं तयं भणिमो ॥५२॥ जत्य य बाला लहुया गिण्हंति धणेहिं पंडगजणुव्व । भासइपवयणमग्गं कहमत्तहिओ पवत्तेइ ॥५३॥ अप्पमणालोइयवओ दिति परेसिं तवेण आलोयणा । मुसंतिइ मुद्धजणं गिण्हंति धणं अहम्मेण ॥५४॥ जे बंभचेरभठ्ठा पाए पार्डति बंभयारीणं । ते हुँति टुटमुंटा बोही वि सुदुल्लहा तेसि ॥५५॥ सीसोदराइफोडणभट्टितं लोहडेउगिहिणणं । जिणपडिमाकयविक्कय उच्चाडणखुद्दकरणं च ॥५६॥ संनिहिमाहाकम्मं जलफलकुसुमाइ सव्वसञ्चित्तं । निच्चं दुतिवारभोयण विगइलवंगाइतंबोलें ॥५॥
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