Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 27
________________ ॥ अथ गुवंधिकारः॥ अह सुगुरुणुवएसो निस्केवाईहि चउप्पयारोबि । नामाइविभेएहिं दवाईहिं तहा जाण ॥१॥ केवलनामेण गुरू ठवणगुरू अख्कपडिमरूवेहिं । दव्वेण लिंगधारी भावे संजलकसाएहिं ॥२॥ तहियाण इसे तहिया वितहा वितहाण जोगजुत्ताणं । दव्वाइविभेएहिं वेसपमाणेहिं भइयव्वा ॥३॥ गुणओब्भितरभावे अणगारनियंठसाहुमुणिपमुहा । पज्जाया उवमा पुण पसन्नचित्ताइगुणविहाणा ॥४॥ ससरीरे वि निरीहा बज्झम्भंतरपरिग्गहविमुक्का। धम्मोवगरणमित्तं धरंति चारित्तरस्कठ्ठा ॥५॥ पंचेंदियदमणपरा जिणुत्तसिद्धतगहियपरमत्था । पंचसमिया तिगुसा सरणं मह एरिसा गुरुणो ॥६॥ लस्किज्जइ सो सुगुरू सद्धाकरणोबएसलिंगेहिं । अनिगृहंतो अप्प सव्वत्थ सुसीलसुचरित्तो ॥७॥ पासत्यो १ ओसन्नो २ होइ कुसीलो ३ तहेव संसत्तो ४ । अहच्छंदो वि ९ य एए अवंदणिज्जा जिणमयंमी ॥८॥ सो पासत्यो दुविहो सव्वे देसे य होइ नायवो। सव्वंमि नाणदंसणचरणाणं जो उ पासम्मी ॥९॥ देसम्मि य पासत्थो सिज्जाहरभिहडरायपिडं च । नीयं च अग्गपिंडं भुंजइ निक्कारणे चेव ॥१०॥ कुलनिस्साए विहरइ ठवणकुल्लाणि य अकारणे विसइ । संखडिफ्लोषणाए गच्छइ तह संथवं कुणइ ॥११॥ ओसन्नो विय दुविहो सव्वे देसे य तत्थ सव्वंमि । उउबद्धपीढफलगो ठबियगभोई व नायव्वो ॥१२॥ Jain Educatiemational For Private & Personal Use Only braryong

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