Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 24
________________ संबोध प्रकरणम्: तित्थयरतित्थपडिमा-तणुपरिभोगाइकारणे वि पुणो। पुढवाइयभावमवि अभव्वजीवहिं नो पत्तं ॥२९४॥ चउदसरयणत्तेणवि पत्तं न पुणो विमाणसामित्तं । सम्मत्तनाणसंजम-तवाइ भावा न भावदुगे ॥२९५॥ अणुभवजुत्ता भत्ती जिणाण साहम्मियाण वच्छल्लं । न य साहेइ अभब्वो संविग्गत्तं च तप्परकं ॥२९६॥ जिणजणयजणणी जाया जिणभिरूकादायगा जुगपहाणा। आयरियपयाइदसंग परमत्थगुणढमप्पत्तं ॥२९॥ अणुबंध १ हेउ २ सरूवा ३ तत्थ अहिंसा तिहा जिणुद्दिष्ठा । दवेण य भावेण य दुहावि तेसिं न संपत्ता ॥२९८॥ सम्मदिठीण जईण-मकसाईणं भवे अहिंसतियं । उज्जुत्ताणुज्जुत्ताण य दव्वभावेहिं होइ दुहा ॥२९९॥ पूयाए कायवहो पसंगजणिओ तहावि अणवज्जो । जम्हा मित्ती पयडा निसीहिकरणंमि सव्वत्थ ॥३०॥ समणोवासगभेया चउहा विरया य सव्वओ विरया । विरया विरया सव्वओ विरयाविरया इमे चउहा ॥३०१॥ मिच्छा केवलसम्मा सम्माविरया य संजमाविरया । अकसिणसंजमविरया विरयाविरया तहा कसिणा ॥३०२॥ पुवाणं जा किरिया हिंसा अणुबंधभावसंजणिया । इयराणझवसाय विसेसओ अग्गिमा दुविहा ॥३०३॥ अभिगमणवंदणनमं-सणाणि पच्चख्कसाहुसोविकिच्चाणि । अणिसिद्धमणुमयाणि-त्ति निरवज्जरूवाणि ॥३०४॥ अरिहंतसिद्धचेइय-गुरुसुयसम्मे य साहुवग्गे य । आयरियउवझाए पवयणे सव्वसंघे य ॥३०५॥ एएसु भत्तिजुत्ता पूर्यता अहारिहं मणा अमणा । सामण्णमणुसरंता परित्तसंसारिया भणिया ॥३०६।। एवं पवयणवयणं धारंता नियमणे महासत्ता । अरिहपयठे अठसु निस्केवाईसु भत्तिपरा ॥३०७।। नाणावरणिज्जस्स उदंसणमोहस्स तह खओवसमे । जीवे अठसु भंगेसु होइ लाहो य सव्वत्थ ॥३०८॥ Jain Educatoamnational For Private & Personal Use Only inelibrary.org

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