Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ संबोध प्रकरणम्: कुंभारचक्कभमणं पढमं दंडाओ तओ वि तयभावे । वयणासंगाणुठ्ठाणं मेयकहणे इमं णायं ॥२३७ ॥ पढमं भावलवाओ पायं बालाइयाण संभवइ । तत्तो वि उत्तरुत्तरसंपत्ती नियमओ होइ ॥२३८॥ तम्हा चउविहंपि हु नेयभिणं पढमरूवगसमाणं । जम्हा मुणीण सव्वं परमपयनिबंधणं भणियं ॥ २३९॥ बीयगरूवसमं पुण सम्माणुठ्ठाणकारणत्तेण । एगंतेण न दु पुव्वायरिया जओ बिति ॥ २४० ॥ असढस्स अपरिसुद्धा किरिया सुद्धाइकारण होइ । अंतोविमलं रयणं सुहेण बझं मलं चयइ ॥ २४१ ॥ तइयगरूवगतुल्ला मायामोसाइदोससंपत्ता । कारिसरूवयववहारि-णोव्व कुज्जा महाणत्थं ॥ २४२ ॥ होइ य पाएणेसा अन्नाणाओ असद्दहणयाओ। कम्मस्स गरुत्ताओ भवाभिणंदीण जीवाणं ॥२४३॥ उभयविहीणाओ पुणो नियमाराहणविराहणा भणिया । विसयब्भासगुणाओ कयाइ हुज्जा सुहनिमित्तं ॥२४४ ॥ जह सावगस्स पुत्तो बहुसो जिणबिंबदंसणगुणेणं । अकयसुकओ वि मरिउं मच्छभवे पाविओ सम्मं ॥ २४५ ॥ भव्वाणं पुण होइ चरिमावत्तंमि चरिमकरणमि । पायमनायासाणं सम्मत्तगुणोवओगाणं ॥ २४६ ॥ तम्हा जिणभत्तीसु वयणाणुठ्ठाणमेव गुणहेऊ । तमणासायणपहवं करिज्जमाणं फलोवेयं ॥ २४७ ॥ मुत्त १ पुरीसं २ पाणु ३ वाणह ४ असण ५ सयणि ६ त्थि ७ तंबोलं८। निठ्ठीवणं ९ च जूयं १० जूयाइपलोयणं ११ विगहा १२ ॥ २४८ ॥ पल्हत्यीकरणं १३ पि हु पायपसारण १४ परोप्परविवाओ १५ । परिहासो १६ मच्छरिया १७ सिंहासणमाइपरिभोगो १८ ॥ २४९ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130