Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 18
________________ संबोध ॥ ८ ॥ *** Jain Education International अकिरियभावगुणेहि बढइ जह जह हविज्ज ता तत्य। भावत्थवो वि जा जोगि-गुणमि सकिरियंमि दव्वत्थओ ॥२०७॥ असुहरूकएण धणियं धन्नाणं आगमेसिमद्दाणं । अमुणियगुणो वि नूणं विसए पीई समुच्छलइ ॥ २०८ ॥ होइ पउसो विसए गुरुकम्माणं भवाभिनंदीणं । पच्छंभि आउराणय उवठिएनिच्छिए मरणे ॥ २०९ ॥ तोचि तत्तन्नू जिणबिंबे जिणवरिंदधम्मे वा । असुहब्भंसभयाओ पओसळेसंपि वज्जति ॥ २९० ॥ दुविहा जिदिआणा आयरणपरिहारएण बोधव्वा । सुकडाणं आयरणं निसेहगाणं च परिहारो ॥ २११ ॥ जम्हा निसेकरणे अबोहिबोहिवि तं तया करणे । एवं जिणभत्तीए अविहिच्चाओ विसेसफलो ॥ २१२ ॥ आरंभपसत्ताणं गिहीण छज्जीववहअविरयाणं । भवअडवीनिवडियाणं दव्वत्थओ चेव आलंबो ॥२९३॥ जिrपूयणं तिसंझं कुणमाणो सोहएइ सम्मत्तं । तित्थयरनामगुत्तं पावइ सेणियनरिदुव्व ॥ २१४॥ जो पूएइ तिसंझं जिणंदरायं सया विगयदोसं । सो तइयभवे सिझइ अहवा सत्तद्रुमे जम्मे ॥ २१५ ॥ सव्वायरेण य एवं पूइज्जतो वि देवनाहेहिं । नो होइ पूइओ खलु जम्हाणंतगुणो भयवं ॥ २१६ ॥ विकरणसत्ती वाणं वज्जिणो हि जावइया । संकप्पाव कहाजाव भत्तीए तह वि नो सक्को ॥ २१७॥ गुणठाणगगुणजणणी अत्तसहावेण निम्मिया पूया । जं जं सहावधम्मे पविसइ सा अवितहा जाण ॥२१८॥ महजो गाणं सरणी निस्सेणी खओवसामगगुणाणं । अणुचियपवित्तिहरणी उचियपवित्तीण सा धरणी ॥ २१९ ॥ जो वीयरायभावो अत्तस्सवलोयणष्ठमुक्तिष्ठो । पडिमाणं पडिबिंबो णेओ आयंससारिच्छो ॥ २२० ॥ दावत्थामेण कीरs सुहकम्मकारिणी जम्हा । अत्तगवेसिजणाणं कायव्वा दव्वओ नियमा ॥ २२९ ॥ For Private & Personal Use Only प्रकरणम्ः ॥८॥ www.jainelibrary.org

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