Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 16
________________ संबोध प्रकरणम् पुन्वधरकालविहिया पडिमाइ संति तिसु वि खित्तेसु । खेत्तरका वत्तस्का महस्कयागं च दिठ्ठाय ॥१७७॥ मालाधराइयाणं घुवणजलाइ फुसेण जिणबिंबं । पुत्थयपत्ताइण वि उवरुवार फुसणाईयं ॥१८॥ ता नज्जइ तो दोसो करणे चउवीसवयाएणं । आयरणाजुत्तीओ गंथेसु अदिस्सनाणत्ता ॥१७९॥ जिणरिद्धिदंसणत्थं एग कारेइ कोइ भत्तिजुओ। पायाडिय पाडिहेरे देवागमसोहियं चेयं ॥१८॥ दंसणनाणचरित्ता-राहणकज्जो जिणत्तियं कोइ । परमेछिनमुक्कारोज्जमियं अह केइ पंचजिणा ॥१८॥ कल्लाणगतवमहिमा-उज्जमियं भरहवासभावित्ति । बहुमाणविसेसाओ केइ कारंति चउवीसं ॥१८२॥ उक्कोसं सत्तरिसयं नरलोए विहरइत्ति भत्तीए । सत्तरिसयंपि केइ बिंबाण कारइ धणदो॥१८३॥ गंधव्वनहवाइय-लवणजलारत्तियाइ दीवाई। किच्चं तं सव्वं ओयरइ अग्गपूयाए ॥१८४॥ आरत्तियमवयारण मंगलदीवं च निम्मियं पच्छा । चउवारेहिं विनिम्मं छणं च विहिणाउ कायव्वं ॥१८५॥ पंचोवयारजुत्ता पूया अठ्ठोवयारकलियाए । रिद्धिविसेसेण पुणो मेया सव्वोवयारा वि ॥१८६॥ तहियं पंचुवयारा कुसुमख्कयगंधधूवदीवेहिं । नेविज्जजलफलेहि जुत्ता अट्ठोवयारा वि ॥१८॥ सब्बोवयारपूया न्हवणचणभूसणत्थवाईहिं । फलबलिदीवाइनह-गीयआरत्तियाईहिं ॥१८८॥ सयमाणेयण पढमा बीया आणावणेण अन्नेहिं । तईया मणसा संपा-डणेणणुमोयणाईहिं ॥१८९॥ पुप्फामिसथुइपडिवत्ति मेएहि भासिया चउहा। जहसत्तीए कुज्जा पूया पूयप्पसब्भावा ॥१९॥ दुविहा जिणिंदपूया दव्वे भावे य तत्थ दव्वंमी। दव्वे जिणोवयारा जिणआणापालणं भावे ॥१९१॥ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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