Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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जम्हा जं एगाए कासाईए जिणिदपरिमाणं । अठ्ठसय लूहित्ता विजयप्पमुहाहिं देवेहिं ॥ १६२॥ वेदव्वं तिविहं यानिम्मल्लकप्पियं तत्थ । आयाणमाईपूयादव्वं जिणदेहपरिभोगं ॥ १६३ ॥ अख्कयफलबलिवत्थाइ संतियं जं पुणो दविणजायं । तं निम्मल्लं वुञ्चइ जिणगिहकम्मंमि उवओगं ॥ १६४ ॥ दव्वंतरनिम्मवियं निम्मल्लं पि हुं विभूसणाईहिं । तं पुण जिणंगसंगि हविज्ज णण्णत्थ तं भयणा ॥ १६५ ॥ रिद्धिजयसंमएहिं सढेहिं अहव अप्पणा चेव । जिणभत्तिइ निमित्तं जं चरियं सव्वमुवओगि ॥ १६६ ॥ पवरेहिं साहणेहि पायं भावो वि जायए पवरो । न य अन्नो उवओगो एएसि सयाण लठ्ठयरो ॥ १६७॥ गंथिम १वे ढिम २ पूरिम ३ संघाइम ४ पुप्फमेयओ चउहा। माला १ मउडं२ सेहर ३ पुष्फगेहाइ ४ रयणाओ ॥ १६८ ॥ न्हवणविले वणआहरण- वत्थफलगंधधूवपुप्फेहि । कीरइ जिणंगपूया तत्थ विही एस नायव्व ॥ १६९ ॥ वत्थेण बंधिऊणं आसं अहवा जहा समाहीए। वज्जेयव्वं तु तया देहंमि वि कंडुयणमाई ॥ १७० ॥ कायकंयणं वज्जे तहा खेलविचिणं । मोणं वा कइ भणणं कुज्जा पूअंतो जगबंधुणो ॥ १७१ ॥ उचियपवित्ती एवं तहाकुणंतस्स होइ नावन्ना । तह मूलबिंबपूया विसेसकरणे वि तं नत्थि ॥ १७२ ॥ जिणभवणचि पूया कीरंति जिणाण नो कए किंतु । सहभावणानिमित्तं बुहाण अबुहाण बोहत्थं ॥ १७३॥ चेहरेण य केई पसंतरूपेण केइ बिंबेण । पूयाइसया अण्णे अण्णे बुझति उवएसा ॥ १७४॥ भिंगारलोमहत्यय-लू हणया धूवदहणमाइयं । पडिमाणं सकहाण व पूयाए इक्कयं भणियं ॥ १७५ ॥ निव्यजिदिसकहा सग्गसमुग्गेसु तिसु वि ठोएसु । अन्नोनं संलग्गा न्हवणजलाइहिं संपुठ्ठा ॥ १७६ ॥
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