Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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संबोध
प्रकरणम्
पुष्फाइ ण्हवणाइ निम्मल्लं जे हवे जिर्णिदार्थ । जंठावइ विहिपुर्व जत्यासायणपरं न हवे ॥१४॥ जइवि हु जिणंगसंगं निम्मल्लं नेव हुज कइयादि । निस्सीकं लोयगुणा-यवहारगुणेहिं निम्मल्लं ॥१४८॥ भरूकणपाउल्लंघण-नियंगपरिभोयमइकम्मपरं । अबिहिष्ठावणमेवं निम्मल्लं पंचहा वज्जं ॥१४९॥ तिरियभवहेउभख्कण-मणज्जजाइसु हविज्ज उल्लंघो । दोहग्गं परिभोगे मूइकम्मे आसुरी जाई ॥१५॥ अविहिवणमबोहि लाहो हुज्जा णिदंसणाणित्थ । देवपुरंदरकुमरा सामात्यी अमरसमरनिवा ॥१५१॥ तम्हा अविहिचाओ कापव्वो सवहा सुनिउणेहि । जम्हाऽणासायणा खल मुख्कंगं मुस्कमग्गस्स ॥१५२॥ विहिकरणमविहिचाओ गुरुगुणवुद्धाणसेवणं सवणं बाळजणाण विवज्जण-मगुणुझणमज्जगुणपख्को ॥१५३॥ अरिहपमुहाण तेरस-पयाण बहुमाणवण्णसंजलणा । कुसलाणुठाणकरण-मिच्चाइ गुणहिं मुख्कंग॥१५४॥ तत्तो निसीहियाए पविसित्ता मंडवंमि जिणपुरओ। महिनिहियजाणुपाणि-सिरेहि विहिणा पणामतियं ॥१५५॥ तयण हरिसुल्लसंतो कयमुहकोसो जिणिदपडिमाणं । अवणेइ रयणिवसिय निम्मल्लं लोमहत्थेण ॥१५६॥ जिणगिहपमज्जण तो करेंइ कारेइ वा वि अन्नणं । जिणाबंबाण पूर्य तो विहिणा कुणइ जहा जोगं ॥१५॥ अहपुव्वं चिय केणइ हविज्ज पूया कया सुविहवेण । तंपि सविसेससोहं जहहोइ तहा तहाकुज्जा ॥१५८॥ निम्मल्लंपि न एवं भणइ निम्मल्ललकणाभावा । भोगविणठं दव्वं निम्मल्लं ननहा वृत्तं ॥१५९॥ दव्वंतरसंपत्तं निम्मल्लस्सावि धाउमुहसस्सं । तं पुण जिणस्स जुग्गं जायइ बालाणमणुचिट्ठे ॥१६०॥ इत्तो चेव जिणाणं पुणरवि आरोवणं कुणंति तहा । वत्थाहरणाईणं जुगलियकुंडठियमाईणं ॥१६१॥
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