Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
View full book text
________________
Jain Educatiomational
भत्तिबहुमाणपव्वं अविहिविहिच्चायपख्कवाएहिं । चभंगीहिं विसुद्धा विसुद्धसम्मत्तथिरकरणी ॥२२२॥ पुणे विहिबहुमाणे पढमो बीओ य होइ बहुमाणे । पुण्णविहीहि तइओ उभयसुण्णे चउत्थो य ॥ २२३ ॥ इत्थं पुणपूयाए रूप्पसमो होइ चित्तबहुमाणो । मुद्दासमविण्णेया संपुण्णा बाहिरा किरिया || २२४ ॥ दोपि समाओगे सुपयणा च्छेयरूवगसारिच्छा । बीयगरूवयतुल्ला पमाइणो भत्तित्तस्स ॥ २२५ ॥ लाभाइनिमित्ताओ अखंड़किरियंपि कुव्वओ तइया । उभयविहूणा नेवा अपूयणा चेव तत्तेण ॥ २२६ ॥ एस इह भवत्थवो कायव्वो देसकालमासज्ज । अप्पो वा बहुगो वा विहिणा बहुमाणजुत्तेण ॥ २२७ ॥ सब्भूयजिणपडिमाणं भांति बाला य अंतरं गुरुयं । तं वयणं नो तच्चं अलख्कतत्ता पमत्तदिसा ॥ २२८ ॥ सव्वण्णू सव्वभासा - संगयभासा हि भासमाणो वि । जम्हाणुवसामगाणं गुणभावंमि उ न भव्वाणं ॥ २२९ ॥ उज्जूमूयाण दुवे जह बवसायमि लिविगुणं पत्तं । तहसख्कपरोस्काणं हे महेऊण जुग्गवसा ॥ २३० ॥ अइसयइद्विजुयाणं विसेसमासंकिऊण जं भणइ । ता नामस्सवि तम्मिव निरत्थयं जाणणुठाणं ।। २३१ ॥ अन्नं च जिणमयंमि चउव्विहं वण्णियं अणुठाणं । पीइजुयं १ भत्तिजयं २ वयणपहाणं ३ असंगं ४ च ॥ २३२ ॥ जं कुणइ पीइरसो वढइ जीवस्स उजुसहावस्स । बालाईण व रयणे पीइअणुठ्ठाणमाहंसु ॥ २३३ ॥ तुल्लं पि पालणाई जायाजणणीपणइभत्तिगयं । पीइभत्तिजुयाणं मेओ नेओ तहंपि ॥ २३४ ॥ जो पुण जिणमुणिचेइसु सुत्तविहाणेण वंदणं कुणइ । वयणाणुठ्ठाणमिणं चरित्तिणो होइ नियमेण ॥ २३५ ॥ जं पुण अभासरसा सुयं विणा कुणइ फलनिरासंसो । तमसंगाणुट्ठाणं विष्णेयं णिऊणदंसीहिं ॥ २३६ ॥
For Private & Personal Use Only
ainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130