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मुस्कियों का संकलन कर कोष के रूप में उन्हें प्रस्तुत करने का महस्थ भी कम नहीं हैं । कोष से सूक्तियों के रचयितानों का तो बोध होता ही है साथ ही वे सहज ही विस्मृत भी नहीं हो पाती।
प्रस्तुत मुक्तिकोष की रसना पुराणकोष तयार करते समय प्राई हुई सैकड़ों सूक्तियों के अध्ययन से प्रेरणा पाकर हुई । इस कोष में संग्रहीत मुक्तियों के स्रोत निम्नांकित पांच जैन पुराण हैं
१ पपुराण....रविवणाचार्य (पाठवीं शती विश्रम) २. हरिवंशपुराण-जिनसेनाचार्य (नवी माती विक्रम) ३. महापुराण-भिमसेनाचार्य द्वितीय एवं अामायं गुमा भन्न
(नवीं-दसवीं शती विक्रम ४. वीरवर्धमानधरित (पुराण)-भट्टारक सकलकीति (पन्द्रहवीं मती धिक्रम) ५. पाण्डवपुराण-शुभचन्द्राचार्य (सत्रहवीं भती विक्रम)
ये पुराग विक्रम को आठवीं शताब्दी में मत्रहवीं शताब्दी तक संस्कृत भाषा में विरभित दिगम्बर जैन पुराणों की प्रतिनिधि रचनाएँ हैं ।
इम सूक्तिकोष से पुराणकारों की परिपक्व प्रभा एवं प्रौद्ध प्रतिभा का परिचय प्रारत होता है। इन सूक्तियों में संस्कृत काव्य-शैली का प्रकृष्ट रूप प्रस्फुटित हुआ है। इनमें मौलिकता भी है। इनकी भाषा चमत्कारपूर्ण, गागर में सागर भर देने वाली है 1 पुराणकारों ने अपनी प्रमर कृतियों में सक्ति पी मणि-मासानों को इस प्रकार संशोया-पिरोया है कि वयं विषय शुष्क एवं नीरस में रहकर सरस एवं मचिकर बन गया है। इस कोष में विविध विषयों पर आधारिल १०३२ सूक्तियां संगृहीत हैं। इनसे जैनपुराणकारों की रचनामिता स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है ।
सक्तियों के विषयों को वर्णक्रमानुसार विभक्त किया गया है एवं प्रत्येक मूति के साथ ही उसके स्रोत का संकेत भी दिया गया है। सूक्ति के सामने उसका हिन्दी अनुबाद सरल और सुन्दोन भाषा में दिया गया है जिससे संस्कृत भाषा से अनमित पाठक भी मुक्ति का लाभ उठा सके । समग्र रूप से जन पुराणों की सूक्तियों के इस प्रकार के कोच का सम्पादन और प्रकाशन पहली बार हो रहा है। प्राणा है यह कोष पाठकों को रुचिकर और लाभप्रद सिद्ध होगा।
इस कोष की मूक्तियों का संकलन संस्थान के शोषसहायक डॉ. कस्तूरचन्द्र सुमन ने किया है, प्रारम्भ में थोड़ी मी सहायता डॉ. वृविचन्द्र जैन ने भी दी थी ।
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