________________
प्रवचनसार
SECTION-2 Reality of Objects-of-Knowledge (jñeyatattva)
अत्थो खलु दव्वमओ दव्वाणि गुणप्पगाणि भणिदाणि। तेहिं पुणो पज्जाया पज्ज्यमूढा हि परसमया ॥2-1॥
अर्थः खलु द्रव्यमयो द्रव्याणि गुणात्मकानि भणितानि । तैस्तु पुनः पर्यायाः पर्ययमूढा हि परसमयाः ॥2-1॥
सामान्यार्थ - [खलु ] निश्चय से [अर्थः] ज्ञेय-पदार्थ [ द्रव्यमयः ] द्रव्यमय - सामान्य स्वरूप वस्तुमय है [ तु] तथा [ द्रव्याणि ] समस्त द्रव्य [गुणात्मकानि ] अनन्त-गुण स्वरूप [भणितानि] कहे हैं। [पुनः] और [ तैः ] उन द्रव्य-गुणों के परिणमन करने से [ पर्यायाः] पर्याय हैं, अर्थात् द्रव्य-पर्याय और गुण-पर्याय ये दो भेद सहित पर्याय हैं, और [ पर्ययमूढा] अशुद्ध पर्यायों में मूढ़ अर्थात् आत्मबुद्धि से पर्याय को ही द्रव्य मानने वाले अज्ञानी [ हि ] निश्चयकर [ परसमयाः ] मिथ्यादृष्टि
Certainly, all objects-of-knowledge (jneya) are substances (dravya) having existence as their general nature. All substances (dravya) have qualities (guņa) and due to transformation in substance and qualities, modes (paryāya) exist; thus, modes (paryāya) are of two kinds: mode-of-substance (dravyaparyāya) and mode-of-qualities (guņaparyāya). Those who mistake the mode (paryāya) for the substance (dravya) are wrong-believers (mithyādrsti).
Explanatory Note: All objects-of-knowledge (jñeya) have both, qualities (guna) and modes (paryāya). The substance (dravya) is the substratum comprising infinite qualities (guņa). Qualities (guņa) exhibit eternal association (anvaya) with the substance.
109