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प्रवचनसार
their continuity of being through gradual changes – vartanā - and in their modifications through time is the specific quality of only the substance of time (kāla dravya). Consciousness (cetanā) that manifests in form of cognition (upayoga) is the specific quality of the substance of soul (jīva dravya); the other five substances are inanimate (acetana) and, therefore, without consciousness.
जीवा पोग्गालकाया धम्माऽधम्मा पुणो य आगासं। सपदेसेहिं असंखा णत्थि पदेस त्ति कालस्स 2-43॥
जीवाः पुद्गलकाया धर्माधर्मी पुनश्चाकाशम् । स्वप्रदेशैरसंख्याता न सन्ति प्रदेशा इति कालस्य ॥2-43॥
सामान्यार्थ - [जीवाः ] जीव-द्रव्य [पुद्गलकायाः ] पुद्गल-स्कंध [ पुनः] और [धर्माधर्मी ] धर्म-द्रव्य तथा अधर्म-द्रव्य [च] और [आकाशं] आकाश-द्रव्य - ये पाँच द्रव्य [स्वप्रदेशैः] स्वप्रदेशों की अपेक्षा से [असंख्याताः ] गणना-रहित हैं, अर्थात् कोई असंख्यात प्रदेशी है कोई अनन्त प्रदेशी है। [ कालस्य ] काल-द्रव्य के [ प्रदेशाः इति ] अनेक प्रदेश [ न संति] नहीं है, अर्थात् काल-द्रव्य प्रदेश-मात्र होने से अप्रदेशी है।
The substances of the soul (jīva dravya), the physical-matter (pudgalakāya), the medium of motion (dharma dravya), the medium of rest (adharma dravya) and the space (ākāśa dravya), each, has innumerable or infinite (asamkhyāta or ananta) spacepoints (pradeśa). The substance of time (kāla dravya) does not have multiple space-points (pradeśa).
Explanatory Note: The substances of the soul (jiva), the physical-matter (pudgala), the medium of motion (dharma), the
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