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This establishes the fact that there is no distinction in the matter (pudgala) of the earth (prthivī ), the water (jala), the fire (agni) and the air (vāyu); the distinction lies in the state of their transformation (parinamana). All forms of matter (pudgala) have the four qualities (guna) of touch (sparśa), taste (rasa), smell (gandha) and colour (varna).
आगासस्सवगाहो धम्मद्दव्वस्स गमणहेदुत्तं । धम्मेदरदव्वस्स दु गुणो पुणो ठाणकारणदा 12-41॥
कालस्स वट्टणा से गुणोवओगो त्ति अप्पणो भणिदो । या संखेवादो गुणा हि मुत्तिप्पहीणाणं ॥2-42॥ (जुगलं )
प्रवचनसार
आकाशस्यावगाहो धर्मद्रव्यस्य गमनहेतुत्वम् । धर्मेतरद्रव्यस्य तु गुणः पुनः स्थानकारणता ॥2-41॥
कालस्य वर्तना स्यात् गुण उपयोग इति आत्मनो भणितः । ज्ञेया संक्षेपाद्गुणा हि मूर्तिप्रहीणानाम् ॥2-42॥ (युगलम् )
सामान्यार्थ - [ आकाशस्य ] आकाश द्रव्य का [ अवगाहः ] एक ही समय सब द्रव्यों को जगह देने का कारण ऐसा अवगाह - नामा विशेष गुण है [ तु ] और [ धर्मस्य ] धर्म द्रव्य का [ गमनहेतुत्वं ] जीव- पुद्गलों के गमन का कारण ऐसा गतिहेतुत्व-नामा विशेष गुण है [ पुनः ] तथा [ धर्मेतरद्रव्यस्य ] अधर्म द्रव्य का [ गुण: ] विशेष गुण [ स्थानकारणता ] एक ही समय स्थिति-भाव को परिणत हुए जीव-पुद्गलों की स्थिति का कारणपना है । [ कालस्य ] काल द्रव्य का [ वर्तना ] सभी द्रव्यों के समय-समय परिणमन की प्रवृत्ति का कारण ऐसा वर्तना नाम का गुण [ स्यात् ] है, [ आत्मनः गुणः ] जीव द्रव्य का विशेष गुण [ उपयोगः इति भणितः ] चेतना परिणाम है, ऐसा भगवान् ने कहा है । [हि ] निश्चय से [ एते
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