Book Title: Pravachansara
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp Printers

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Page 286
________________ between themselves. Due to its dispositions of attachment (rāga) etc. the soul (jīva) forms psychic bonds – bhāvabandha. Due to the instrumentality of each other, the soul (jiva) and the karmic molecules - kārmāṇa-vargaṇā – existing in the same space form bonds-jīva-pudgala-bandha or dravyabandha. प्रवचनसार Explanatory Note: The soul (jīva) is exposed to three kinds of fresh bondage. 1) The karmic molecules bound already with the soul (jiva) make bonds with the new karmic molecules due to their quality of touch (sparsa), greasiness or roughness; this is the pudgalabandha. 2) The impure-cognition (aśuddhopayoga) of the soul (jīva) causes the psychic - bondage ( bhāvabandha) or the jivabandha. 3) The soul (jiva) and the karmic molecules existing in the same space form bonds due to the instrumentality of each other; this is the jīva-pudgala-bandha or the dravyabandha. सपदेसो सो अप्पा तेसु पदेसेसु पोग्गला काया । पविसंति जहाजोग्गं चिट्ठति य जंति बज्झति ॥2-861 सप्रदेशः स आत्मा तेषु प्रदेशेषु पुद्गलाः कायाः । प्रविशन्ति यथायोग्यं तिष्ठन्ति च यान्ति बध्यन्ते ॥2-86॥ - सामान्यार्थ – [ सः ] वह [ आत्मा ] आत्मा [ सप्रदेश: ] लोकप्रमाण असंख्यात प्रदेशी है [ तेषु प्रदेशेषु ] उन असंख्यात प्रदेशों में [ पुद्गलाः कायाः ] पुद्गलकर्मवर्गणा-पिण्ड [ यथायोग्यं ] मन, वचन, काय वर्गणाओं की सहायता से जो आत्मा के प्रदेशों का कंपरूप योग का परिणमन है उसी के अनुसार [ प्रविशन्ति ] जीव के प्रदेशों में प्रवेश करते हैं [च] और [ बध्यन्ते ] परस्पर में एक क्षेत्रावगाहकर बंधते हैं तथा वे कर्मवर्गणा - पिण्ड [ तिष्ठन्ति ] राग, द्वेष, मोह भाव के अनुसार अपनी स्थिति लेकर ठहरते हैं, उसके बाद [ यान्ति ] फल देकर क्षय हो जाते हैं। 225

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