Book Title: Pravachansara
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp Printers

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Page 394
________________ absolutistic (anekāntātmaka) vision the knower-soul (jñāyaka) and all objects-of-knowledge (jñeya), and who have renounced all internal and external attachments (parigraha). Their soulsubstance (ätmatattva) is endowed with the strength of infiniteknowledge (anantajñāna). They have no inclination towards the objects of the senses. They are happily engrossed, as if in relaxed sleep, in own soul - nature with no obligations and occupations. They have destroyed, with great strength, all inlets of karmas and are immensely influential. They are the Pure Ones (suddha) in pure-cognition (śuddhopayoga) the reality of the means of attaining liberation - mokṣatattvasādhana. - सुद्धस्स य सामण्णं भणियं सुद्धस्स दंसणं णाणं । सुद्धस्स य णिव्वाणं सो च्चिय सिद्धो णमो तस्स 13-741 प्रवचनसार शुद्धस्य च श्रामण्यं भणितं शुद्धस्य दर्शनं ज्ञानम् । शुद्धस्य च निर्वाणं स एव सिद्धो नमस्तस्मै ॥3-74 ॥ - सामान्यार्थ – [ शुद्धस्य ] जो परम वीतरागभाव को प्राप्त हुआ मोक्ष का साधक परम योगीश्वर है उसके [ श्रामण्यं ] सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र की एकाग्रता लिये हुए साक्षात् मोक्षमार्गरूप यतिपद [ भणितं ] कहा है [ च ] और [ शुद्धस्य ] उसी शुद्धोपयोगी मोक्षसाधक मुनीश्वर के [ दर्शनं ज्ञानं ] अतीत, अनागत, वर्तमान, अनन्त-पर्याय सहित सकल पदार्थों को सामान्य - 1 - विशेषताकर देखना - जानना भी कहा है [ च ] तथा [ शुद्धस्य ] उसी शुद्धोपयोगी मुनीश्वर के [ निर्वाणं ] निरावरण अनन्तज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य सहित परम-निर्मल मोक्ष - अवस्था भी है [ स एव ] वही शुद्ध मोक्षसाधन [ सिद्धः ] टंकोत्कीर्ण परमानन्द अवस्थाकर थिररूप निरावरण दशा को प्राप्त परब्रह्मरूप साक्षात् सिद्ध है [ तस्मै ] ऐसे सर्वमनोरथ के ठिकाने मोक्ष-साधन शुद्धोपयोगी को [ नमः ] हमारा भाव - नमस्कार होवे । 333

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