________________
प्रवचनसार
transmigration, the soul (jīva) keeps on attaining new states of existence while shedding the prior states of existence; this is the nature of the worldly existence-samsāra.
आदा कम्ममलिमसो परिणाम लहदि कम्मसंजुत्तं । तत्तो सिलिसदि कम्मं तम्हा कम्मं तु परिणामो ॥2-29॥
आत्मा कर्ममलीमसः परिणामं लभते कर्मसंयुक्तम् । ततः श्लिष्यति कर्म तस्मात् कर्म तु परिणामः ॥2-29॥
सामान्यार्थ - [आत्मा ] यह जीव [कर्ममलीमसः ] पुद्गल-कर्मों से अनादिकाल से मलिन हुआ [कर्मसंयुक्तं] मिथ्यात्व, रागादि रूप कर्म सहित [ परिणामं] अशुद्ध विभाव (विकार) रूप परिणाम को [ लभते ] पाता है, [ततः] और उस रागादि रूप विभाव परिणाम से [ कर्म ] पुद्गलीक द्रव्यकर्म [श्लिष्यति ] जीव के प्रदेशों में आकर बंध को प्राप्त होता है [तु] और [ तस्मात् ] इसी कारण से [परिणामः ] रागादि विभाव परिणाम ही [कर्म ] पुद्गलीक-बंध का कारण-रूप भावकर्म है।
Mired in karmic dirt and because of the influence of the karmas bound with it, the soul (jīva) undergoes impure transformations, like delusion (moha) and attachment (rāga). Due to such impure transformations, the particles of karmic matter fasten to the space-points (pradesa) of the soul (jiva). Hence, impure transformations (like attachment) of the soul - its bhāvakarma - are the cause of bondage of material-karmas (dravyakarma).
Explanatory Note: The soul's impure transformations (like attachment) cause the bondage of fresh material-karmas
153