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Pravacanasāra
nāsti). Further, it can be asti-avaktavya, nāsti-avaktavya, and astināsti-avaktavya, depending on the point-of-view. This seven-fold mode of predication - saptabhangi – with its partly meant and partly non-meant affirmation (vidhi) and negation (nisedha), qualified by the word 'syāt' (literally, in some respect'; indicative of conditionality of predication) dispels any contradictions that can occur in thought. The viewpoints of absolute existence, oneness, permanence, and describability, and their opposites – absolute non-existence, manyness, non-permanence, and indescribability - corrupt the nature of reality while the use of the word 'syāt' (conditional, from a particular standpoint) to qualify the viewpoints makes these logically sustainable.
एसो त्ति णत्थि कोई ण णत्थि किरिया सहावणिव्वत्ता। किरिया हि णत्थि अफला धम्मो जदि णिप्फलो परमो 2-24॥
एष इति नास्ति कश्चिन्न नास्ति क्रिया स्वभावनिर्वृत्ता । क्रिया हि नास्त्यफला धर्मो यदि निःफलः परमः 2-24॥ सामान्यार्थ - [ एषः] यह पर्याय टंकोत्कीर्ण अविनाशी हो [इति] ऐसा [कश्चित् ] नर-नारकादि पर्यायों में कोई भी पर्याय [ नास्ति ] नहीं है। और [स्वभावनिर्वृत्ता] रागादि अशुद्ध परिणतिरूप विभाव स्वभावकर उत्पन्न हुई जो [क्रिया ] जीव की अशुद्ध कर्तव्यता [नास्ति न] वह नहीं है ऐसा भी नहीं अर्थात् क्रिया तो अवश्य है। [ यदि ] जो [ परमः धर्मः ] उत्कृष्ट वीतराग भाव [ निष्फलः] नर-नारकादि पर्यायरूप फल करके रहित है तो [ हि ] निश्चय से [ क्रिया ] रागादि परिणमनरूप क्रिया [अफला] फल रहित [ नास्ति ] नहीं है, अर्थात् क्रिया फलवती है।
Modes or states of existence, such as the human or the infernal being, are not permanent. It cannot be maintained that these
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