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(sattā). There is no difference of space-points (pradeśa) in the possessor-of-quality (guni) – the substance (dravya) and the quality (guna) - of existence ( sattā); both exist in the same spacepoints (pradeśa).
पविभत्तपदेसत्तं पुधत्तमिदि सासणं हि वीरस्स । अण्णत्तमतब्भावो ण तब्भवं होदि कधमेगं ॥2-14॥
प्रविभक्तप्रदेशत्वं पृथक्त्वमिति शासनं हि वीरस्य । अन्यत्वमतद्भावो न तद्भवत् भवति कथमेकम् ॥2-14॥
प्रवचनसार
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सामान्यार्थ - [हि ] निश्चय से [ वीरस्य ] महावीर भगवान् का [ इति ] ऐसा [ शासनं ] उपदेश है कि [ प्रविभक्तप्रदेशत्वं ] जिसमें द्रव्य के प्रदेश अत्यन्त भिन्न हों वह [ पृथक्त्वं ] पृथक्त्व नाम का भेद है। और [ अतद्भावः ] प्रदेशभेद के बिना संज्ञा, संख्या, लक्षणादि से जो गुण-गुणी-भेद है सो [ अन्यत्वं ] अन्यत्व है। परन्तु सत्ता और द्रव्य [ तद्भवत् ] उसी भाव अर्थात् एक ही स्वरूप [ न भवति ] नहीं हैं फिर [ कथं एकं ] दोनों एक कैसे हो सकते हैं? नहीं हो सकते।
Lord Mahavira has expounded that the existence characterized by difference of space-points (predeśa) is separateness (prthaktva). The existence characterized by difference of individual identity, without difference of space-points, is the self-identity (anyatva). How can that which maintains own identity be one with the other?
Explanatory Note: The existence characterized by difference of space-points (pradeśa), as in case of the stick-holder (dańdi) and the stick (danda), is separateness (prthaktva). This kind of
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