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प्रवचन सुधा
गवाशनानां वचनं शृणोत्ययमहं मुनीनां वचनं शृणोमि । न तस्य दोषो न च मे गुणो वा संसगंजा दोष-गुणा भवन्ति ॥ अर्थात् हे महाराज, कृपाकर मेरी प्रार्थना सुनिये । हम दोनों अपनी मां के पेट से एक साथ जन्मे हुए दोनों सगे भाई हैं । चचपन में ही बहेलियों के द्वारा हम दोनों पकड़ गये । मैं तो साधु-सन्तों के हाथों में बिका और यह मेरा भाई कसाइयों के हाथों में बिका। मैं साधु-सन्तों को बोली सुनता रहा, सो ये श्लोक आदि याद हो गये हैं । और मेरा भाई कमाइयों की बोली सुनता रहा, सो, उनके यहाँ जैसा बोलचाल रहा, वह उसे याद हो गया। महाराज, मेरे श्लोक बोलने में न मेरा कोई गुण है और न उसके बोलने में कोई दोष है । हम लोग अर्थ - अनर्थ को क्या जाने । जैसा सुना वैसा याद कर लिया । प्राणी में दोप और गुण भले-बुरे संसर्ग से हो जाते हैं उस तोते की बात सुनकर उसे बावड़ी में फेंकने से रोक दिया और जंगल मे छुड़वा दिया ।
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भाइयो, इसके कहने का अभिप्राय यही है कि हमें अपनी सन्तान को बुरे संसर्ग से बचाना चाहिए। आप नहा-धोकर और उत्तम वरत्र पहिन कर निकले और यदि तेल या घी से चिक्कट जाजम बिछी है तो उस पर नहीं बैठेंगे, क्योंकि आप जानते हैं कि इस पर बैठने से हमारे कपड़े खराब हो जायेंगे । इसी प्रकार कोई चोर चोरी करके मार्ग में जा रहा है । आपने आगे-पीछे कुछ विचार न करके उसका साथ पकड़ लिया इतने में पीछे से पुलिस आगई, तो वह चोर के साथ क्या आपको नहीं पकड़ेगी ? अब आप कहें कि मैंने चोरी नही की है, मैं निर्दोष हूं, इस प्रकार आप कितनी अपनी सफाई क्यों न देवें, पर पुलिस नहीं छोड़ेगी, क्योंकि आप उस चोर के साथ थे ।
जांति-पांति किसलिए सन्तान पर न पड़े,
सज्जनो, इस कुसंग का प्रभाव हम पर और हमारी इसके लिए पूर्वजों ने यह जाति-पांति की दीवाल खड़ी की थी । अन्यथा उनका कलेजा छोटा नहीं था । और न उन्हें किसी से घृणा थी । यदि घृणा थी. तो दुर्गुणों से ही घृणा है । आज यदि ये हरिजन अपने दुर्गुणों को छोड़ दें, तो उनके अपनाने में हमे कोई आपत्ति नहीं है ।
भाइयों, और भी देखो आप सामायिक में बैठे है और कोई बाई भी सामायिक कर रही है । न आप उसका स्पर्श कर रहे हैं और न वह आपका स्पर्श कर रही है । यदि किसी कारणवश एक का से दूसरे संघट्टा हो जाय, तो इसमें किसी जीव की हिंसा नहीं हुई है । परन्तु यह संघट्टा लोक-व्यवहार के विरुद्ध हैं, क्योंकि इसमें दोनों की हो बदनामी की आशंका है । इसी प्रकार