________________
२२
प्रवचन-सुधा - होती चली गई 1 आचार-विचार से गिर गई और खान-पान से भी गिर गई। हिंसादि पापों में निरत हो गई और सर्व प्रकार के दुर्व्यसन सेवन करने लगी, तब प्रतिवन्ध का उठाना तो दूर रहा, उल्टा उसे कठोर और करना पड़ा। अब बाप लोग स्वयं विचार करें कि जब उन लोगों का इतना अधिक पतन हो गया है, तब उनके साथ उच्च आचार-विचार और निर्दोप खान-पान वालों का एकीकरण कैसे किया जा सकता है। ऐसी दशा में तो उनके साथ एकीकरण करना सारी सामाजिक शुद्धि को समाप्त करना है और उत्तम आचारविचार वालों को भी हीन भाचार-विचार वाला बनाता है। क्योंकि संसर्ग से उनके दुर्गुणों का समाज में बौर हमारी सन्तान में प्रवेश होना सहज संभव है।
हरिजन कौन ? भाई, बाज सर्वत्र हरिजन-उद्धार की चर्चा है । 'हरिजन' यह कितना अच्छा नाम है । हरि नाम भगवान का है, उनके जो अनुयायी हैं, उन्हें हरिजन कहते हैं। 'हरिजन नर तो तेने कहिये जे पीर पराई जाने रै', यह गान्धीजी का प्रिय भजन रहा है । हरिजन कहो, चाहै वैष्णवजन कहो, एक ही बात है । जो दूसरों की पीर जाने, वह हरिजन है। परन्तु हम देखते हैं कि जो लोग आज हरिजन कहलाते हैं, उनमें दया का नामोनिशान भी नहीं है। वेचारे दोन पशु-पक्षियों को मारना और खाना ही उनका काम है। जीवित सूकरों को लाठियों से निर्दयतापूर्वक मारना और जीवित ही उन्हें आग में भून कर खाना नित्य का कार्य है। जिन जोगों में इतना अधिक राक्षसपना आ गया है, पहिले उनके ये दुर्गुण छुड़ाना आवश्यक है। उनके आचार-विचार का सुधार करो, तब तो सच्चा हरिजन-उद्धार कहा जाय । परन्तु इस ओर तो किसी का ध्यान नहीं है। उलटे कहते हैं कि उनके साथ खान-पान करो, उन्हें अपने समान समझो। यदि इस प्रकार उनकी बुरी आदतों को छुड़ाये बिना ही उन्हें अपना लिया गया तो वे फिर क्यों अपने दुर्गुण छोड़ेंगे ? उनके संसर्ग से हमारे भीतर भी चे दुर्गुण आजावेंगे। ऐसी दशा में हरिजन-उद्धार तो नहीं होगा। हां, हमारा पतन अवश्य हो जाएगा।
कुछ लोगो का कहना है कि जो ऊंची जातियां कहलाती हैं, उनमें भी तो उक्त दुर्गुण पाये जाते है। भाई, आपका कहना सत्य है। ऐसे लोगों का हम काम समर्थन करते है। जो उच्च-जाति में जन्म लेने पर भी नीच कार्य फरते हैं, ये तो जन्मजात हरिजनों में भी अधिक निम्न हैं। उनका सुधार करना भी आवश्यक है। जब मर्दी का प्रकोप होता है और बर्फानी हवा