Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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अभावप्रमाणका प्रत्यक्षादि में अन्तर्भाव-मीमांसक के अभाव प्रमाण का यथा योग्य प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों में किस प्रकार समावेश होता है । इसका प्रतिपादन कर प्राचार्य ने सभी प्रवादी के प्रमाण संख्या का खण्डन करके प्रत्यक्ष और परोक्ष इस प्रकार दो ही प्रमुख प्रमाण हैं । यह सिद्ध किया है, परोक्ष प्रमाण में अनुमान, प्रागम आदि प्रमाणों का भली प्रकार से समावेश होता है। तथा मीमांसक के अर्थापत्ति का अनुमान में और उपमान का प्रत्यभिज्ञानमें अन्तर्भाव करके प्रमाण संख्या का निर्णय किया है।
प्रागभावादि का विवेचन-मीमांसक के प्रागभाव आदि चारों अभावों का लक्षण सदोष बतलाकर जैन सिद्धांतानुसार इनके लक्षणका प्रणयन इस प्रकरणमें पाया जाता है ।
_ विशदत्वविचार-बौद्ध विशद और अविशद धर्मों को पदार्थ का स्वभाव बतलाते हैं सो उसका निरसन कर ज्ञान में विशदत्व और अविशदत्व स्वभाव होता है ऐसा सिद्ध किया है।
चक्षुः सन्निकर्षवाद-स्पर्शन आदि इन्द्रियों की तरह नेत्र भी पदार्थ को छूकर ही बोध कराते हैं । ऐसा नैयायिकादि का कहना है सो इसका खण्डन किया है ।
सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष- इन्द्रियां और मन से होने वाले एक देश विशद ज्ञान को सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहते हैं । इसका कथन करते हुए योग के "पृथ्वी" आदि एक-एक भूत से एक घ्राणादि इन्द्रियां बनती है ऐसे मत का निरसन किया है और बतलाया है कि "स्पर्शनादि इन्द्रियां पुद्गल द्रव्य से निर्मित हैं।" पृथ्वी आदि चारों पदार्थों में स्पर्श, रस, गंध और वर्ण चारों ही गुण मौजूद हैं । इस प्रकार "श्री माणिक्यनंदी विरचित परीक्षा मुख ग्रन्थ की बृहत् काय टीका स्वरूप प्रमेय कमल मार्तण्ड में प्रमाण का वर्णन बहुत ही विस्तृत किया गया है । इसके प्रथम भाग में परीक्षा मुख के प्रथम अध्याय के १३ और द्वितीय अध्याय के ५ कुल १८ सूत्रों का विवेचन है । श्री प्रभाचन्द्राचार्य ने प्रमाण के लक्षण में जो विविध मान्यता है उसका अस्खलित रूप से खण्डन किया है । और स्याद्वादवाणीसे उसका निर्दोष लक्षण तथा भेद, आदि अन्य विषयों का वर्णन किया है।
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