Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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शब्दाद्वैतवाद-शब्द-अद्वैत-वाद शब्द मात्र जगत है शब्द से अन्य दूसरा कुछ नहीं ऐसा मानना शब्दाद्वैतवाद है । इस मतके प्रतिष्ठापक भर्तृहरि का कहना है कि जगत के दृश्यमान और अदृश्यमान सभी पदार्थ शम्दमय हैं । ज्ञान, ज्ञेय या प्रमाण प्रमेय आदि सब कुछ शब्दरूप ही तत्व हैं।
विपर्यय ज्ञान विचार-किसी वस्तु का सदृशता आदि कारणों से विपरीत ज्ञान होना विपर्यय ज्ञान है । इस ज्ञान के विषय में भिन्न-भिन्न मत हैं ।
स्मृति प्रमोष -विपर्यय ज्ञान को ही प्रभाकर स्मृतिप्रमोषरूप अर्थात् स्मृति नष्ट होना रूप मानते हैं।
__अपूर्वार्थवाद-प्रमाण का विषय सर्वथा अपूर्व किसी भी प्रमाण के द्वारा नहीं जाना हुआ ऐसा नवीन ही हुआ करता है । ऐसा मीनांसक का मत है । उसको खंडित करके प्रमाण कथंचित अपूर्व विषयवाला होता है । इस प्रकार सिद्ध किया है ।
__ब्रह्माद्वैतवाद-ब्रह्ममय (चेतनमय ) जगत है, एक ब्रह्म को छोड़कर दूसरा पदार्थ ही संसार में नहीं है, परम ब्रह्म सर्वत्र व्यापक अत्यन्त सूक्ष्म है, और उसी के ये सभी दृश्य पदार्थ विवर्त हैं । जड़ कहलाने वाले पदार्थ भी ब्रह्ममय हैं । ऐसा ब्रह्मवादी का कहना है ।
विज्ञानाद्वैत-बौद्ध का एक भेद योगाचार का कहना है कि एक ज्ञान मात्र तत्त्व है और कुछ भी नहीं, यह दिखाई देने वाले नाना पदार्थ मात्र कल्पना जाल है । अनादि अविद्याके कारण यह सब पदार्थ मालूम पड़ते हैं, किन्तु वास्तविक तो विज्ञान ही एक मात्र वस्तु है । उसी का ज्ञेयाकार रूप से ग्रहण हुआ करता है।
चित्रात-ज्ञान में अनेक आकार हैं । वही सब कुछ है, अन्य नहीं ऐसा बौद्ध के कुछ भाई प्रतिपादन करते हैं।
शून्यात-बौद्ध का चौथा भेद माध्यमिक शून्यवादी है. वह तो अपने अन्य बौद्ध भाई से प्रागे बढ़ कर कहता है कि विज्ञानरूप तत्त्व भी सिद्ध नहीं हो पाता अता सर्वशून्यता माननी चाहिये।
___ अचेतनज्ञानवाद-ज्ञान अचेतन है, क्योंकि वह प्रकृति का धर्म है । ऐसा सांख्य प्रतिपादन करते हैं । प्रात्मा मात्र चेतन है निराकार है। अतः उसमें यह घट आदि का प्राकार रूप ज्ञान रह नहीं सकता प्रात्मा अमूर्तिक है इसलिये भी प्रात्मा में ज्ञान नहीं रहता ऐसा इनका हटाग्रह है।
___ साकारज्ञानवाद-ज्ञान में नील, पोत आदि प्राकार होते हैं । ज्ञान घट आदि पदार्थ से उत्पन्न होकर उसका आकार ग्रहण करता है ऐसा बौद्धका कहना है ।
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