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* प्राकृत व्याकरण * 200000rsneamrosarotesternmoooooooommercirrrroreverenosotrovoseonsootos
स्वर 'श्रा की प्राप्ति हो जाती है । 'तो' प्रत्यय की संयोजना में 'अ' के स्थान पर 'श्री' को प्रानि होकर पुनः सूत्र-संख्या १-८४ से 'अ' के स्थान पर 'अ' हो जाया करता है। उदाहरण इस प्रकार है:-वृक्षात् = बच्छतो, वच्छामा, बच्छाउ, बच्छाहि, वच्छाहिन्तो और वच्छा अर्थात वृक्ष से। 'दो' और 'दु' .. प्रत्ययों में स्थित 'दकार' अन्य भाषा 'शौरसेनी' के पंचमी विभक्ति के एक बचन की स्थिति को प्रदर्शित करने के लिये व्यक्त किया गया है; सदनुसार प्राकृत में स्वभावत: अथवा सूत्र संख्या १-१७७ से 'दृ' का लोप करके शेष 'श्री' और '' प्रत्ययों की ही प्राकृत-रूपों में संयोजना की जाती है । यह अन्तर अथवा विशेषता ध्यान में रहनी चाहिये ।
वक्षानः-संस्कृत पञ्चम्यन्त रूप है । इसके प्राकृत रूप वच्छत्तो, बच्चाओ, बच्छाउ, वच्छाहि, कच्छाहिन्तो और वफ्छा होते हैं। इनमें वन्छ' रूप तक की साधनिका सूत्र-संख्या ३-४ के अनुसार; ३-१२ से प्राप्त रूप 'वच्छ' में स्थित अन्त्य हस्व स्वर 'अ' के स्थान पर दाघ स्वर 'श्रां' की प्राप्ति और ३-८ से पंचमी विभक्ति के एक वचन में कम से 'तो', 'ओ', 'उ', 'हि', 'हिन्तो' और 'प्रत्यय-लोप' की प्राप्ति होकर कम से वच्छत्ती, बच्छाओ, बच्छाउ, बच्छाह, वच्छाहिन्ती और घच्छा रूप सिद्ध हो जाते हैं । प्रथम रूप 'वच्छत्ती' में यह विशेषता है कि उपरोक्त राति से प्राप्तव्य रूप 'कच्चात्तो' से सूत्र संख्या १४ से पुनः दीर्घ स्वर 'मा' के स्थान पर हरव स्वर 'म' की प्राप्ति होकर 'वच्छत्तो' रूप (ही) सिद्ध होता है ॥३-८॥
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भ्यसस् तो दो दु हि हिन्तो सुन्तो ॥३-६।।
नतः परस्य म्यसः स्थाने सो दो, दु, हि, हिन्तो, सुन्ती इत्यादेशा भवन्ति ।। वृक्षेभ्यः । बच्छत्तो । यच्छाप्रो। बच्छाउ । वच्याहि । वच्छेहि । वच्छाहिन्तो। वच्छेहिन्तो बच्छासुन्तो । बच्छेसुन्तों ॥
अर्थः-अकारान्त शब्दों में पंचमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'भ्यसभ्य' के स्थान पर प्राकृत में कम से 'तो'; 'दोश्रो'; दु-उ', 'हि'; 'हिन्तो' और 'सुन्लो' प्रत्ययों को आदेश प्राप्ति होती है। सूत्र संख्या ३-१२ में 'तो' प्रत्यय, 'ओ' प्रत्यय और 'उ' प्रत्यय के पूर्व शब्दान्य हस्वस्वर' 'अ' के स्थान पर दीर्घ स्वर 'श्रा की प्राप्ति होती है । 'तो' प्रस्थय को संयोजना में यह विशेषता है कि 'या' की प्राप्ति होने पर पुनः सूत्र-संख्या १-८४ से 'श्रा' के स्थान पर 'अ' हो जाता है। इसी प्रकार से महि', 'हिन्ता और 'सुन्तों' प्रत्ययों के सम्बन्ध में यह विधान है कि सूत्र संख्या ३-१३ से शब्दान्त्य 'अ' के स्थान पर कभी 'मा' को प्राप्ति होती है तो कभी सूत्र संख्या ३-१५ से 'थ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति भी हो जाती है। यों 'हि', 'हिन्लो' और 'सुन्लो' प्रत्ययों के योग से प्रकारान्त शब्द के छह रुप हो जाते हैं। तदनुमार कुल मिलाकर पंचमो विभक्ति के बहुवचन में अकारान्त में नौ रूप