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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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भिसो हि हिँ हिं ॥ ३-७॥
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श्रतः परस्य भिसः स्थाने केवलः सानुनासिकः सानुस्वारश्व हि भवति ॥ वच्छेहि । बच्छे िवच्छे िकया छाही ||
अर्थः- अकारान्त शब्दों में तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'मिस' के स्थान पर प्राकृत में कभी केवल हि' प्रत्यय की आदेश रूप से प्राप्ति होती है; कभी सानुनासिक हि प्रत्यय की प्रवेश-प्राप्ति होती है; तो कभी सानुस्वार हिं' प्रत्यय को आदेश प्राप्ति हुआ करती है; एवं सूत्रसंख्या ३-२५ से प्राप्त प्रत्यय 'हि हि हि के पूर्वस्थ शब्दान्त्य 'अ' के स्थान पर ' को प्राप्ति हो जाती हैं । जैसेः- वृत्तेः कृता छाया=वच्छेहि अथवा वच्छेहि अथवा वच्छेहिं कया छाही अर्थात वृक्षों द्वारा की हुई छाया ॥
वृक्षैः - संस्कृत तृतीयान्त बहु वचन रूप है। इसके प्राकृत रूप वच्द्वेहि, वच्छेहिं और बच्चे हिं होते हैं । इनमें "वच्छ" रूप तक की सिद्धि सूत्र संख्या ३-४ के अनुसार (जानना); ३-७ से तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'मिस्' के स्थानीय रूप 'ऐस' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से एवं defore रूप से 'हि', हिँ हिं' प्रत्ययों की प्राप्ति और ३-१५ से प्राप्त प्रत्यय हि' अथवा 'ह' और 'हिं' 'पूर्वस्थ 'वच्छ' शब्दान्त्य 'अ' के स्थान पर 'Q' की प्राप्ति होकर क्रम से 'बच्छेद' 'पच्छे' और 'बच्छेहिं' रूपों की सिद्धि हो जाती है।
'क्या' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-१०४ में की गई है। 'छाही' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या१-२४९ में की गई है ।। २-७ ॥
ङसेस् तो- दो-दु-हि- हिन्तो-लुकः || ३-८ ||
अतः परस्य उसे तो दो दु हि हिन्तो लुक् इत्येते पदादेशा भवन्ति ॥ वच्छत्तो । घच्छाओ । बच्छाउ | वच्छाहि । वच्छाहिन्तो । बच्छा || दकार करणं भाषान्तरार्थम् ॥
अर्थः- अकारान्त शब्दों में पंचमी विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'इति' के स्थानीय रूप 'आत्' के स्थान पर प्राकृत में 'तो', 'दोश्रो; 'दु = उ', 'हि' और 'हिन्दी' प्रत्ययों की क्रम से आदेश - प्रति होती है और कभी कभी इन प्रत्ययों का लोप भी हो जाता है; ऐसी अवस्था में मूल शब्द रूप के अन्त्य ह्रस्व स्वर 'अ' के स्थान पर सूत्र संख्या ३-१२ से 'आ' की प्राप्ति होकर प्राप्त रूप पंचमीविभक्ति के अर्थ को प्रदर्शित कर देता है। यों पंचमी विभक्ति के एक वचन में अकारान्त में वह रूप ही जाते हैं। पाँच रूप तो प्रत्यय-जनित होते हैं और छट्टा रूप प्रत्यय- लोप से होता है । इन छह ही रूपों में सूत्र संख्या ३-१२ से प्रत्ययों की क्रमिक रूप से संयोजना होने के पहले शब्दान्त्य 'अ' के स्थान पर दीर्घ