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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित 2 ooooooooooosrrorettasterstronotestsotrosarowesords00000000stessories
'एसों रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या -११९ में को गई है। 'एस' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-३१ में की गई है। 'सो' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१७७ में की गई है। 'परी' रुप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२२९ में की गई है। 'स' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१७७ में की गई है ।।३-३।।
जस्-शसोलुक् ॥३-४॥ अकारान्तानाम्नः परयो : स्यादिसंबधिनी जस-शासोलुंग भवति ।।वच्छा एए वच्छे पेच्छ ।
___ अर्थ:-अकारान्त प्राकृत पुल्लिंग शब्दों में प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में और द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में क्रम से संस्कृतोय प्राप्तव्य प्रत्यय 'जस्' और 'शत्' का लोप हो जाता है । इस प्रकार प्रथमा विभक्ति में 'जस' प्रत्यय का लोप हो जाने के पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१२ से अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'या' की प्राप्ति होती है । जैसे:-वृक्षाः एतेचच्छा एए । इसी प्रकार से द्वितीया विभक्ति में भी 'शम्' प्रत्यय का लोप हो जाने के पश्चात सूत्र संख्या ३-१२ से अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'आ' की प्राप्ति होती है एवं कभी सूत्र-संख्या ३-१४ से अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति होती है। जैसे:-वृत्तान् पश्य (वच्छा अथवा) वच्छे पेच्छ अथात् वृक्षों को देखो ।
वृक्षाः-संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप वच्छा होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-५२६ से 'म' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति २-३ से 'क्ष' के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति; २-८६ से प्राय छ' की द्वित्व 'छ छ' की प्राप्ति :-० से प्राप्त पूर्व छ' के स्थान पर 'च' की प्राप्ति; ३-४ से प्रथमा विभक्ति में, अकारान्त पुल्लिग के बटुवचन में प्राप्त प्रत्यय 'जस' का लोप और ६-१२ से प्राप्त एवं लुप्त 'जस्' प्रत्यय के पूर्वस्थ शब्दान्त्य 'अ' को दीघ स्वर 'या' की प्राप्ति होकर पच्छा रूप सिद्ध हो जाता है।
एतेः-संस्कृत सर्वनाम रूप है । इसका प्राकृत रूप एए होता है, इसमें सूत्र-संख्या १-१७७ से'त' का लोप होकर 'एए' रूप सिद्ध हो जाता है । अथवा १-१९ से मूल संस्कृत शब्द 'एतत' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन '' का लोप; १-१८७ से द्वितीय 'त्' का लोप; ३-५८ से प्रथमा विभक्ति के बहु-वचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'जस' के स्थान पर प्राकृत में 'डे' प्रत्यय की प्राप्तिः प्राप्त प्रत्यय 'डे' में स्थित 'इ' इत्संज्ञक होने से प्राप्त रूप 'एन' में स्थित अन्त्या 'अ' की इत्संज्ञा होकर इस 'अ'का लोप और तत्पश्चात् प्राप्त रूप 'ए + एएए' की सिद्धि हो जाती है।
वृक्षान:- संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप अच्छे होता है। इसमें 'वच्छ' रूप तक की सिद्धि उपरोक्त इसी सूत्र अनुसार (जानना ); ३-४ से द्वितीया विभक्ति के बहु वचन में प्राप्त प्रत्यय 'शस' का