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*प्राकृत व्याकरण * Ritesarirrovetoiletstrendramorroristotrorestres00000rses.6000000000 प्राप्ति: १-१४८ से द्वितीय रूप में 'ऐ के स्थान पर 'g' की प्राप्ति; ३-५ से द्वितीया विभक्ति के एक वचन में 'म्' प्रत्यय की प्रापि और १-२३ से प्राप्त 'म्' को अनुस्वार होकर कम से दोनों रूप एक्कमेक्के और एस्केक्क सिद्ध हो जाते हैं।
एकमेकेन:--संस्कृत तृतीयान्न रूप है। इसका प्राकृत रूप एकमेकेण होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-६८ से दोनों 'क' वर्गों के स्थान पर द्वित्व 'क' वर्ण की प्राप्ति; ३-१ से वीप्सो अर्थक पद होने से संस्कृत के समान ही प्राकृत में भी विभक्ति वाचक प्रत्यय 'टाइन' के स्थान पर 'म' आदेश की प्रामिः १.५ से प्राप्त हलन्त 'म' अादेश के साथ में आगे रहे हुए 'श' स्वर को संधि; ३-६ से तृतीया विभक्ति के एक पचन में अकारान्त में 'टा' प्रत्यय के स्थान पर 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-१४ से प्राप्त प्रत्यय 'ण' के पूर्व में स्थित शब्दान्त्य 'अ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति होकर एक्कमेक्कण रूप सिद्ध हो जाता है।
अङ्ग अङ्ग मामला है । सात बार हमाम मोना है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१ से वीप्सा--अर्थक पद होने से प्रथम पद 'अङ्ग' में संस्कृतीय सक्षमी विभक्ति वाचक प्रत्ययाङि=इ' के स्थान पर प्राकृत में 'म्' श्रादेश; १-५ से प्राप्त प्रादेश रूप हलन्त 'म' में आगे रहे हुए 'अ' स्वर को संधि; और ३-११ से सप्तमी विभक्ति के एक वचन में अकारान्त में संस्कृतीय प्रत्यय 'ङि=इ' (के स्थानीय रूप 'ए') के स्थान पर प्राकृत में 'म्मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अङ्गमङ्गम्मि रूप सिद्ध हो जाता है ॥३-११||
अतः से डोंः ॥३-२॥
प्रकारान्तानाम्नः परस्य स्यादेः सेः स्थाने डो भवति ।वच्छो॥
अर्थः-प्राकृतीय पुल्लिंग अकारान्त शब्दों में प्रथमा विभक्ति में संस्कृतीय प्रथमा विभक्ति वाचक प्रत्यय 'सि' के थान पर 'डो' प्रत्यय की प्राप्ति होती है। प्राप्त प्रत्यय 'डो' में स्थित 'जु' इत्संज्ञक होने से प्रकारान्त प्राकृत शब्दों में स्थित अन्त्य 'अ' की इत्संज्ञा होकर इस अन्त्य 'अ' को लोप हो जाता है और तत्पश्चान प्राप्त हलन्त शब्द में 'डो-ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होती है। जैसे:-वृक्षः यच्छी ।।
'पच्छो रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या -१७ में की गई है ॥३.२॥
वैतत्तदः ॥३-३॥ एतत्तदोकारारपरस्य स्यादेः से डों वा भवति ।एसो एस । सो णरो । स गरी ॥
अर्थ:-संस्कृतीय सर्वनाम रूप 'एतत्' और 'तत' के पुल्लिंग रूप 'एषः' और 'सः' के प्राकृतीय प्राप्त पुल्लिंग रूप 'एस' और 'म' में प्रथमा विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'डोओ' की प्राप्ति वैकल्पिक रूप से हुआ करती है। जैसे:-एषः = एसो अथवा एस | 4: नरसो गरो अथवा स परो।।