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प्राकृत व्याकरण का लुक विकल्प से होता है और स्वर से पर में रहनेवाले तकार का द्वित्व है । जैसेप्राकृत
संस्कृत किं ति
किमिति यं ति .
यदिति दिटुं ति
दृष्टमिति न जुत्तं ति ।
न युक्तमिति स्वर से पर रहने पर जैसेतह त्ति
तथेति पिओ त्ति
प्रिय इति पुरिसो त्ति
पुरुष इति विशेष-पद से पर में नहीं रहने के कारण नीचे लिखे
उदाहरण में न तो इति के आदि इ का लुक हुआ
और न तकार का द्वित्व ही। इसविझ-गुहा
निलयाए। (५१)-जिन श, ष, स् से पूर्व अथवा पर में रहनेवाले य, र, व् , श् , ' , स् वर्णों का प्राकृत के नियमानुसार लोप हुआ हो उन शकार, षकार और सकारों के आदि स्वर का दीर्घ . हो जाता है। जैसे
. * देखिए-नियम १.६६ .
+ इस नियम को पूर्णतः समझने के लिए हेमचन्द्र के अधोमनयाम् २.७८ अनादौ शेषादेशयोर्द्वित्वम् । २. ८६ न दीर्घानुस्वारात् । २.६२ श्रादि सूत्रों का मनन श्रावश्यक है।