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तृतीय अध्याय __ ७१ विशेष-मईअ-पक्खे, पाणिगीआ ( मदीयपक्षे; पाणिनीयाः ) में उक्त नियम नहीं लगता है । पर और राजन शब्दों से पारक्कं और राइक्कं भी बनते हैं।
( ३८ ) इदमर्थ में युष्मद्-अस्मद् शब्दों से पर में रहनेवाले अञ् प्रत्यय के स्थान में 'एच्चय' आदेश होता है । जैसे :-तुम्हेच्चयं, अम्हेच्चयं ( यौष्माकम् , आस्माकम् )
विशेष-अपभ्रंश में इदमर्थ प्रत्ययों के स्थान में केवल 'आर' आदेश होता है | यथा:-अम्हारो ( अस्मदीयः)।
( ३६ ) त्व प्रत्यय के स्थान में 'डिमा' और 'तण' आदेश विकल्प से होते हैं। जैसे:-पीणिमा, पीणत्तणं ( पीनत्वम् )
विशेष-तल ( ता ) प्रत्ययान्त पीनता आदि के स्थान में पीणआ ( या ) इत्यादि रूप होते हैं। पीणदा रूप विशेष प्राकृत में भले ही होता हो, किन्तु सामान्य प्राकृत में नहीं होता। हाँ प्राकृतप्रकाशकार कुल प्राकृतों में तल प्रत्यय के स्थान में 'दा' आदेश करते हैं ।
(४० ) अंकोठवर्जित शब्द से पर में आनेवाले 'तैल' प्रत्यय के स्थान में 'डेल्ल' आदेश होता है । जैसे:-इङ्गुदीएल्लं ( इङ्गुदीतैलम् )
विशेष-अंकोठ शब्द से अंकोल्लतल्लं रूप होता है। .
१. प्रा० प्र० ४. २२.
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