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चतुर्थ अध्याय
माए
एकवचन
बहुवचन प्रथमा माआ
माआ द्वितीया मा' तृतीया माआइ, माआअ, इत्यादि माएहि-हि-हिं पञ्चमी माआदो, माआए, इत्यादि माआहितो, माआसुतो षष्ठी माआइ, माआअ, इत्यादि माआणं, माआण सप्तमी " " " माआसु-सुं संबोधन हे माअ, इत्यादि हे मात्रा, इत्यादि .
___ स्त्रीलिङ्ग में गो शब्द के गावी और गाई ये दो रूप होते हैं। इन दोनों के रूप ईकारान्त स्त्रीलिङ्ग शब्दों के अनुसार चलते हैं।
अजन्त नपुंसक लिङ्ग के शब्दों के सम्बन्ध में नियम :
(३८ ) नपुंसक लिङ्ग में वर्तमान स्वरान्त शब्दों से पर में आनेवाले सु (प्रथमा के एकवचन) के स्थान में 'म्' होता है । जैसे :-वणं ( वनम् )
(३६) नपुंसक लिङ्ग में वर्तमान स्वरान्त शब्दों से पर में आनेवाले जस् और शस् ( प्रथमा और द्वितीया के बहुवचन) के स्थान में इ, ई और णि आदेश होते हैं। जैसे :-कुला, कुलाई और कुलाणि |
विशेष—(क) शौरसेनी में नपुंसक लिङ्ग में जस्-शस् के स्थान में केवल 'णि' आदेश होता है ।
(ख) अपभ्रंश में जस्-शस् के स्थान में 'ई' आदेश होता है।
१. शौरसेनी में द्वितीया के एकवचन में 'मादरं' यह रूप होता है ।