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षष्ठ अध्याय
१२७ (३१ ) धातुओं में स्वरों के स्थान में अन्य स्वर बाहुल्येन होते हैं। जैसे :-हवइ,' हिवइ (भवति ); चिणइ,' चुणइ (चिनोति ); सद्दहणं, सहहाणं (श्रद्दधानम् ); धावइ, धुवइ ( धावति ); रुवइ, रोवइ (रोदिति)
विशेष-बाहुल्येन कहने से-देइ, लेइ, विहेइ नासइ आदि प्रयोगों में नित्य ही धातु के एकस्वर के स्थान में दूसरा स्वर हुआ।
(३२) कुछ संस्कृत धातुओं के प्राकृत रूपान्तर नीचे लिखे अनुसार होते हैं :
संस्कृत धातु प्राकृत रूपान्तर कथ
वज्जर, पज्जर, उप्पाल, पिसुण, संघ, बोल्ल, चव, जम्प, सीस, साह तथा दुःख अर्थ
में णिव्वर। जुगुप्स
झुण, दुगुच्छ, दुगुच्छ बुभुक्ष
णीख पक्ष में बुहुक्ख ध्या
झा . गा
जाण, मुण उद् + ध्मा
धुमा श्रद्धा
दह (सदहइ) पा (पीने में) पिज्ज, डल्ल, पट्ट, घोट्ट उद्+वा
ओरुम्वा, वसुआ नि+द्रा
१. देखिए-भुवेर्होहुवहवाः । हेम. ४. ६० २. देखिए-इसी पुस्तक का ६. २२.
ज्ञा
ओहीर, उङ्घ