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एकादश अध्याय
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क्रमशः धुं और त्रं आदेश विकल्प से होते हैं । जैसे:- प्रङ्गणि चिट्ठदि नाहु धुं त्रं रणि करदि न भ्रन्ति ( प्राङ्गणे तिष्ठति नाथः यत् यद् रणे करोति न भ्रान्तिम् ); पक्ष में तं बोल्लिअइ जु निव्वहइ ( तत् जल्प्यते यन्निर्वहति ) ।
( ३३ ) अपभ्रंश में नपुंसक -लिङ्ग में वर्तमान इदम् शब्द के स्थान में सु और अम् के पर में रहने पर इमु आदेश होता है । जैसे : - इमु कुलु तुह तणउँ; इमु कुलु देक्खु (इदं कुलं इत्यादि) । ( ३४ ) अपभ्रंश में प्रथमा और द्वितीया के एकवचनों में एतद् शब्द के स्त्रीलिङ्ग में एह, पुंल्लिङ्ग में एहो और नपुंसक में एहु रूप होते हैं । जैसे:- एह कुमारी. एहो नरु, एहु मणोरह ठागु ( एषा कुमारी, एष नरः, एतन्मनोरथस्थानम् | )
में
( ३५ ) अपभ्रंश जस्-शस् के आने पर एतद् शब्द के स्थान एइ आदेश होता है । देखो - इसी अध्याय के नियम २ तथा ३ की पादटिप्पणी एइ पेच्छ ( एतान् प्रेक्षस्व ) |
( ३६ ) अपभ्रंश में जस्-शस् के आने पर अदस् शब्द के स्थान में ओइ आदेश होता है । जैसे:- ओइ' |
( ३७ ) अपभ्रंश में इदम् शब्द के स्थान में आय आदेश स्वादि विभक्तियों के पर में रहने पर होता है । जैसे :- आयई ( इमानि ), आयेण ( एतेन ), आयहो ( अस्य ) इत्यादि ।
( ३८ ) अपभ्रंश में सर्व शब्द के स्थान में साह आदेश विकल्प से होता है । जैसे :- साहु विलोड; सव्वु विलोड ( सर्वोऽपि लोकः ) ।
१. जइ पुच्छह घर वड्डाई तो वड्डा घर ओइ ।
विहलि जण - श्रब्भुद्धरणु कन्तु कुडोरइ जोइ ॥
( यदि पृच्छथ गृहाणि महान्ति तद् महान्ति गृहाणि श्रमूनि । विह्वलितजनाभ्युद्धरणं कान्तं कुटीर के पश्य ॥ )