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प्राकृत व्याकरण
। घई
"
:
:
पुणु विणु
:
४.४२४. खाई
" केहि
४. ४.५.
" " रेसि
" "
" " तणेण'
" " पुनः
४. ४२६. विना
" " अवश्यम् अवसें अवस
४.४२७. एकशः एकसि
५.४२८. (६५) अपभ्रंश में नाम (प्रातिपदिक) के आगे स्वार्थ में अ, अड, और उल्ल प्रत्यय होते हैं। और स्वार्थिक क प्रत्यय का लुक भी होता है । जैसे:-बे दोसडा (द्वौ दोषौ) कुडुल्ली (कुटी)।
विशेष:-जहाँ अड और उल्ल प्रत्यय होते हैं, वहाँ पूर्व के टि का लोप भी हो जाता है।
(६६) पूर्वोक्त नियमानुसार जो प्रत्यय किये जाते हैं तदन्त नाम से स्त्रीत्व अर्थ के द्योतन में ई प्रत्यय हो जाता है और टि का लोप भी होता है । जैसे:-गोरड + ई =गोरडी।
(६७) अपभ्रंश में स्त्रीलिङ्ग के द्योतन करने वाले अप्रत्ययान्त से पर में आने वाले प्रत्यय से पुनः आ प्रत्यय होता है। जैसे:-धूलि =धूल =धूलडधूलडिआ (धूलिः)।
विशेष:-स्त्रीलिङ्ग में वर्तमान नहीं रहने पर यह नियम लागू नहीं होता । जैसे:-कन्नडइ ( कर्णे)।
१. २. अनर्थक निपात। ३. ४. ५. ६. ७. तादर्थ्य निपात ।