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एकादश अध्याय
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( ६८ . ) अपभ्रंश में युष्मदादि शब्दों से पर में आने वाले ई प्रत्यय का आर आदेश होता है । और उसके पूर्व के टिका लोप भी होता है । जैसे :- तुहारेण ( युष्मदीयेन ); अम्हारा ( अस्मदीयम् ); महारा ( अस्मदीयः ) |
( ६६ ) अपभ्रंश में इदम् किम्, यद्, तद् और एतद् शब्दों से पर में आने वाले अंतु प्रत्यय के स्थान में एत्तुल आदेश होता है और पूर्व के टिका लोप होता है । जैसे :- एतुलो, केत्तुलो, जेलो, तेत्तुलो ।
( ७० ) अपभ्रंश में सप्तम्यन्त सर्वादि से पर में आने वाले प्रत्यय के स्थान में एतहे आदेश होता है । पूर्व के टिका लोप होता है । जैसे :- एत्तहे, तेत्त हे ( अत्र तत्र ) ।
(७१) अपभ्रंश में त्व और तल प्रत्ययों के स्थान में प्रायः पण आदेश होता है । जैसे :- बडप्पर ( महत्वम् ); पक्ष मेंवडत्तणहो ( महत्त्वस्य ) |
( ७२ ) अपभ्रंश में तव्य प्रत्यय के स्थान में इएव्बउं, एव्वर्ड और एवा ये तीन आदेश होते हैं । जैसे:- करिएव्बउं, मरिएव्वर्ड I ( कर्तव्यम्, मर्तव्यम् ); सहेव्वरं ( सोढव्यम् ); सोएवा, जग्गेवा ( स्वपितव्यम्, जागरितव्यम् ) ।
(७३) अपभ्रंश में क्त्वा प्रत्यय के स्थान में इ, इउ, इवि, अवि, एप्पि, एप्पिणु, एवि और एविणु आदेश होते हैं । इ जैसे :- मारि (मारयित्वा ); इड जैसे : - भज्जिउ ( भङ्क्तवा), इवि जैसे :- चुम्बिधि ( चुम्बित्वा ); अवि जैसे :- विछोडवि ( विच्छाय ); एप्पि जैसे : - जेपि ( जित्वा ); एप्पिणु जैसे :- एपिणु ( त्यक्त्वा ); एवि जैसे : – पालेवि ( पालयित्वा ): एविणु जैसे : - लेविशु ( लात्वा ) ।