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प्राकृत व्याकरण . (४४) अपभ्रंश में धातु से पर में आनेवाले वर्तमानकालिक उत्तम पुरुष के एकवचन तिङ् के स्थान में उं आदेश विकल्प से होता है । जैसे:-कड्ढउं (कर्षामि); पक्ष में कड्ढामि (कर्षामि)
(४५) अपभ्रंश में धातु से पर में आनेवाले वर्तमानकालिक उत्तम पुरुष के बहुवचन तिङ के स्थान में हुं आदेश विकल्प से होता है । जैसे:-लहहुं, लभामहे ); जाहुं ( यामः); वलाहुं ( वलामहे )।
(४६) अपभ्रंश में हि और स्व के स्थान में इ, उ और ए ये तीनों आदेश विकल्प से होते हैं । इ जैसे:-सुमरि', मेल्लि ( स्मर, मुश्च ); विलम्बु' (विलम्बस्व ); करे (कुरु ) पक्ष मेंसुमरहि इत्यादि ।
( बलेः अभ्यर्थने मधुमथनो लघुकीभूतः, सोऽपि ।
यदि इच्छथ महत्त्वं दत्त मा मार्गयत कमपि ॥) २. विहि विणडउ पीडन्तु गह मं धणि करहि बिसाउ । संपइ कढउँ वेस जिवँ छुडु अग्घइ ववसाउ ॥ (विधिविनाटयतु ग्रहाः पीडयन्तु मा धन्ये कुरु विषादम् ।
संपदं कर्षामि वेषमिव यदि अर्घति व्यवसायः॥) ३. खग्ग-विसाहिउ जहिँ लहहुँ पिय तहिँ देसहिँ जाहुँ । रण- दुभिक्खें भग्गाइं विणु जुज्में न वलाहुँ ॥ (खड्ग-विसाधितं यत्र लभामहे तत्र देशे यामः।
रणदुर्भिक्षेण भग्नाः विना युद्धेन न वलामहे ॥) १. २. ३. कुञ्जर सुमरि म सल्लइउ सरला सास म मेल्लि ।
कवल जि पाविय विहि-वसिण ते चरि माणु म मेल्लि ॥ भमरा एत्थु वि लिम्बडइ के वि दियहडा विलम्बु । घण-पत्तलु छाया.बहुलु फुल्लइ जाम कयम्बु ॥