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एकादश अध्याय
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कथञ्चित् प्राप्स्यामि प्रियम् ); पक्ष में- जइ भग्गा पारक्कडा तो सहि मज्झु प्रियेण ( यदि भग्नाः परकीयास्तत्सखि मम प्रियेण | )
(५२) अपभ्रंश में कहीं-कहीं सर्वथा अविद्यमान रेफ भी होता देखा जाता है । जैसे::- त्रासु महारिसि एंड भणइ ( व्यासः महर्षिः एतद् भणति'; 'कहीं कहीं' ऐसा कहने से 'वासेण वि भारहखम्भि बद्ध ( व्यासेनापि भारतस्तम्भे बद्धम् । ) में नियम लागू नहीं हुआ ।
(५३) अपभ्रंश में आपद्, विपद्, और संपद् के अन्त्यद् के स्थान में कहीं-कहीं इ हो जाता है । जैसे :- अणउ करन्तहा पुरिसहो आवइ आवइ ( अनयं कुर्वतः पुरुषस्य आपद् आयाति ); विवइ (विपद् ); संपइ ( संपद ); 'कहीं-कहीं' कहने से 'गुण हिं' न संपय कित्ति पर ' ( उपर्युक्त नियम ७ की पादटिप्पणी ४ ) में संपइ न होकर संपय हुआ ।
(५४) अपभ्रंश में कथं, यथा और तथा के थादि अवयवों के स्थान में हर एक के एम, इम, इह और इध ये चार आदेश होते हैं और पूर्व केटि का लोप होता है। जैसे:- 'केम' (केवर) समप्पर दुहु दिणु किध रयणी हुड होय' ( कथं समाप्यतां दुष्टं दिनं कथं रात्रिः शीघ्रं भवति ? ) एवं किह; जेम ( वँ), जिम ( वँ), जिह, जिध, तेम ( वँ), तिम ( वँ ), तिह तिध होते हैं ।
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( ५५ ) अपभ्रंश में यादृश्, तादृश् कीदृश् और ईदृश् शब्द क्रमशः जेहु, तेहु, केहु और एहु रूप प्राप्त करते हैं । जैसे :जेहु, तेहु, केहु, एहु ( यादृक्, तादृक् कीदृक्, ईदृक् )
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१. तुलना कीजिए— गुजराती के केम, जेम और तेम से । २. तुलना कीजिए—– हिन्दी के क्यों, ज्यौं और त्यौं से । ३. मई भणिउ बलिराय तुहुं केहउ मग्गण एहु ।
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