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एकादश अध्याय
२१३ ( २६) अपभ्रंश में नपुंसक लिङ्ग में वर्तमान कान्त (जिसके अन्त में असहित क हो ) शब्द से पर में आनेवाले सु (प्रथमाएकवचन ) और अम् (द्वितीया-एकवचन ) के स्थान उं आदेश होता है। जैसे :-इसी अध्याय के नियम २२ की पाद टिप्पणी २ में तुच्छउं (तुच्छम् ) है । और भग्गउं' (भग्नकम् ) इत्यादि को भी देखना चाहिए।
(२७) अपभ्रंश में अकारान्त सर्वादि से पर में आनेवाले असि ( पञ्चमी-एकवचन) के स्थान में हाँ आदेश होता है। जैसे :-जहाँ होन्तउ आगदो, तहाँ होन्तउ आगदो ( यस्मात् भवान् आगतः, तस्मात् भवान् आगतः ) एवं कहाँ (कस्मात् )।
(२८) अपभ्रंश में अकारान्त किम् (क) से पर में आनेवाले सि के स्थान में इहे आदेश और क के अकार का लोप विकल्प से होता है । जैसे :-किहे२ (कस्मात् ), कहाँ (कस्मात् )।
(२६) अपभ्रंश में अकारान्त सर्वादि शब्दों से पर में आने वाले सप्तमी के एकवचन लि के स्थान में हिं आदेश होता है।
( कमलानि मुक्त्वा अलिकुलानि करिगण्डान् कांक्षन्ति ।
असुलभम् एष्टुं येषां निर्बन्धः ते नापि दूरं गणयन्ति ॥) १. भग्गउं देक्खिवि निय-बलु, बलु पसरिअउं परस्सु । उम्मिल्लइ ससिरेह जिवं करि-करवालु पियस्सु ॥ (भग्नकं दृष्ट्वा निजकं बलं बलं प्रसृतकं परस्य ।
उन्मीलति शशिलेखा यथा करे करवालः प्रियस्य ॥) २. जइ तहें तुहल नेहडा मई सहुँ न वि तिल-तार । तं किहें वङ्केहिं लोअणेहिं जोइन्जउँ सय चार ॥ ( यदि तस्याः त्रुट्यतु स्नेहः मया सह नापि तिलतारः । तत् कस्मात् बक्राभ्यां लोचनाभ्यां दृश्ये ( अहं) शतवारम् ॥)