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प्राकृत व्याकरण
+रुध
क्रियते
भी 44 mi_on a
ज्ञा
.
स्त्रिह
उबरुह्यइ, उबरुधिन्नइ उपरुध्यते हीरइ, हरिनइ
ह्रियते कृ
कीरइ, करिजइ तीरइ, तरिज्जइ
तीर्यते जीरइ, जरिजइ
जीर्यते विढप्पइ, विढविज्जइ,अजिजइ अय॑ते Jणचइ, णजइ, जाणिज्जइ, ज्ञायते
(णाइज्जइ वि+आ+ह वाहिप्पइ, वाहरिजइ व्याहियते आ+रभ आढप्पइ, आढवीअइ आरभ्यते सिप्पइ
स्निह्यते सिंच सिप्पड़
सिच्यते ग्रह घेप्पइ, गण्हिजइ स्पृश छिप्पइ
(२७) धातु के अन्त्य उवर्ण के स्थान में अव आदेश होता है । जैसे :-हु धातु का 'एहव' इत्यादि ।
(२८) धातु के अन्त्य ऋवर्ण के स्थान में 'अर' आदेश होता है । जैसे :-कृ का कर इत्यादि ।
विशेष-वृषादि के ऋकार का 'अरि' आदेश होता है । जैसे :-वृष का वरिस कृष का करिस इत्यादि ।
(२६) धातु के इवर्ण और उवर्ण का गुण होता है । जैसे :नेइ (नयति ), मोत्तुण ( मुक्त्वा ) ।
(३०) रुष आदि धातुओं के स्वर का दीर्घ होता है। जैसे:-रूसइ, पूसइ, सीसइ, तूसइ, दूसइ, (रुष्यति, पुष्णाति शिनष्टि, तुष्यति, दुष्यति)
गृह्यते स्पृश्यते
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