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अष्टम अध्याय
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वः (युष्मान् , युष्माकम् ) सहलं
सफलम् सरिक्खं सक्षम्
छ का अभाव सम्महो सम्मर्दः
उ का अभाव प्राकृत सर्वस्व के अनुसार शौरसेनी में तिङन्त रूपों के नियम (४५) ( क ) धातुओं से परस्मैपद ही होते हैं।
(ख ) तीनों कालों में प्रायः लट् लकार ही होता है। (ग) त्यादि के तकार का दकार होता है। (घ) बहुवचन में तकार का घकार होता । (छ) उत्तम पुरुष में म्ह होता है। (च) उत्तम पुरुष में मिप के साथ स्सम् ही होता है। (छ) ज, ज, हा, सोच्छं वोच्छं ये सब नहीं होते हैं।
प्राकृतसर्वस्व के अनुसार शौरसेनी धातुं संस्कृत शौरसेनी सिद्ध क्रियापद
भो और हो भोदि, होदि, क्त में भूदं दृश पेच्छ'
पेच्छदि वुच्च
वुच्चदि
कधेदि जिग्घ
जिग्यदि भा भाअ
भादि मृज फुस
फुसदि घुम्म
घुम्मदि १. हेमचन्द्र के अनुसार पेक्ख आदेश होता है । देखो अष्टम अध्याय
का नियम ३७ ।
कथ
कध
घा
घूर्ण