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दशम अध्याय
- २०१ (८) पैशाची में श और ष के स्थान में स होता है। जैसे:-सोभति, सोभनं, ससी (शोभते, शोभनं, शशी)। विसमो, विसानो (विषमः, विषाणः)।
(१) पैशाची में हृदय शब्द के यकार के स्थान में पकार हो जाता है । जैसे:-हितपक (हृदयकम् )।
(१०) पैशाची में टु के स्थान तु आदेश विकल्प से होता जैसे :-कुतुम्बकं, कुटुम्बकं (कुटुम्बकम् )।
(११) पैशाची में क्त्वा प्रत्यय के स्थान में तून आदेश होता है । जैसे:-गन्तून, हसितून, पठितून (गत्वा, हसित्वा, पठित्वा)।
(१२) पैशाची में ट्वा के स्थान में खून और त्थून आदेश होते हैं । जैसे:-नद्धन, नत्थून; तळून, तत्थून (नष्ट्वा, दृष्ट्वा )।
(१३) पैशाची में कहीं कहीं र्य, स्त्र और ष्ट के स्थानों में क्रमशः रिय, सिन और सट आदेश होते हैं। जैसे:-भारिया, सिनातं, कसटं ( भार्या, स्नातम् , कष्टम् )।
विशेष-( क ) प्राकृतप्रकाश ( १०. ७. ) के अनुसार स्त्र के स्थान में सन आदेश होता है । जैसे :-सनानं, सनेहो ( स्नानम् , स्नेहः )।
(ख) नियम १३ में कहीं-कहीं' कहने से सुज्जो (सूर्यः ), सुनुसा और तिट्ठो (दिष्टः) में उक्त नियम नहीं लगा ।
(१५) पैशाची में भाव-कर्मवाले यक के स्थान में इय्य आदेश होता है । जैसे:-रमिय्यते, पठिय्यते (रम्यते, पठ्यते)।
(१५) पैशाची में कृ धातु से पर में आये हुए भाव-कर्मवाले यक के स्थान में ईर आदेश होता है और धातु के टि ( ऋ) का लोप हो जाता है । जैसे:-कीरते (क्रियते)।
(१६) पैशाची में याहश, तादृश आदि के ह के स्थान में