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एकादश अध्याय
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स्व हुआ है ।) स्त्रीलिङ्ग में जैसे :- विट्टीएं ( पुत्रि । यहाँ ह्रस्व का दीर्घ हुआ है ), पट्टि ( प्रविष्टा । यहाँ दीर्घ का ह्रस्व हुआ है | ), निसिश्री खग्ग ( निशिताः खड्गा । यहाँ दीर्घ का ह्रस्व हुआ है । ), घोडा ( अश् स्वर का दीर्घ हो गया है । )
( ३ ) अपभ्रंश में सु ( प्रथमा के एकवचन ) और अम् विभक्तियों के आने पर शब्द के अन्तिम अ के स्थान में उहो जाता है । जैसे :- दहमुहु, तोसिअ - संकरु, चउमुहु, छंमुहु ( दशमुखः, तोषित - शंकरः, चतुर्मुखं, षण्मुखम् )
(४) अपभ्रंश में पुंल्लिङ्ग में वर्तमान शब्द ( प्रातिपदिक ) के अन्त्य अ के स्थान में ओ विकल्प से होता है, जब कि उन
१. विट्टीए मइ भणिय तुहुँ मा करु वङ्की दिठि । पुत्ति सकण्णी भलि जिवं मारइ हिश्र पट्ठि ॥ ( पुत्रि मया भणिता त्वं ' मा कुरु वक्रां दृष्टिम्' । पुत्रि सकर्णा भल्लिर्यया मारयति हृदये प्रविष्टा ॥ )
२. एइति घोडा एह थलि एइ ति निसि खग्ग । एत्थु मुणीसिम जाणिश्रइ जो न वि वालइ वगा ॥ ( एते ते श्रश्वाः एषा स्थली एते ते निशिताः खड्गाः । अत्र मनुष्यत्वं ज्ञायते यः नापि वालयति वल्गाम् ॥ )
३. दहमुहु भुवंण - भयंकरु तोसिअ संकरु णिग्गड रहवर चडाउ । चउमुहु छंमुहु फाइव एक्कहिं लाइव णावर दहवें घडिउ || ( दशमुखः भुवनभयंकरः तोषितशङ्करः निर्गतः रथवरे श्रारूढः । चतुर्मुखं षण्मुखं ध्यात्वा एकस्मिन् लगित्वा इव दैवेन घटितः ) ।