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नवम अध्याय [ मागधी ]
( १ ) प्रकृतिः शौरसेनी ( वर० ११.२ ) इस वररुचि सूत्र के अनुसार मागधी की प्रकृति शौरसेनी मानी गई है । साथ ही साधारण प्राकृत के शब्द भी मागधी के मूल माने जाते हैं ।
( २ ) मागधी में अदन्द पुंल्लिङ्ग शब्दों का प्रथमा के एकवचन में ओकारान्त रूप न होकर एकारान्त रूप होता है । जैसे :- एशे मेरो; एशे पुलिशे ( एष मेषः, एष पुरुषः ); करेमि भन्ते ( करोमि भदन्त ) |
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(३) भागधी में रेफ के स्थान में लकार और दन्त्य सकार के स्थान में तालव्य शकार होते हैं । रेफ का जैसे :नले, कत्ले ( नरः करः ), स का श जैसे :- हंशे ( हंस: ); दोनों का जैसे :- शालशे, पुलिशे ( सारसः पुरुषः ) |
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( ४ ) मागधी में यदि सकार और षकार ( अलग-अलग ) संयुक्त हों तो उनके स्थान में स होता है। ग्रीष्म शब्द में उक्त
आदेश नहीं होता । संयुक्त सकार में जैसे :- पक्खलदि हस्ती (प्रस्खलति हस्ती ) बुहस्पदी ( बृहस्पत्तिः ) मस्कली ( मस्करी ), विस्मये ( विस्मय: ); संयुक्त षकार में जैसे :शुष्क- दालु ( शुष्कदारु ), कस्टं कष्टम् ), विस्नुं ( विष्णुम् ), उस्मा (ऊष्मा), निस्फलं (निष्फलम् ) धनुस्खण्डं ( धनुष्खण्डम् )