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अष्टम अध्याय
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न का आकार विकल्प से होता है। जैसे :-भो कञ्चइआ (भो कचुकिन् }; सुहिआ (सुखिन् ) अन्यत्र भो तवस्सि (भो तपस्विन् ); भो मणस्सि ( भो मनस्विन )।
(६) शौरसेनी में आमन्त्रणवाले सु के पर में रहने पर पूर्ववाले नकारान्त शब्द के न के स्थान में विकल्प से म होता है। जैसे :-भो रायं ( भो राजन् ); भो विअयवम्म (भो विजयवर्मन् ) अन्यत्र भयव हुदवह ( भगवन् हुतवह ) होता है।
(७) शौरसेनी में भवत् और भगवत् शब्दों से सुविभक्ति के पर में रहने पर पूर्व के नकार का मकार होता है। जैसे:एदु भवं, समणे भगवं महावीरे । पजलितो भयवं हुदासणो।
(८) शौरसेनी में र्य के स्थान में य्य आदेश विकल्प से होता है । जैसे :-अय्यउत्त पय्याकुली कदम्हि (आर्यपुत्र पर्याकुलीकृतास्मि); सुय्यो (सूर्यः) पक्ष में अजो (आर्यः), पज्जाउलो (पर्याकुलः ); कज्जपरवसो (कार्यपरवशः)। ___ (६) शौरसेनी में थ के स्थान में ध विकल्प से होता है। जैसे :-णाधो, णाहो, कधं, कह; राजपधो, राजपहो (नाथः, कथं, राजपथः)।
(१०) शौरसेनी में 'इह' और 'हच्" आदेश के हकार के स्थान में ध विकल्प से होता है। जैसे :-इध (इह); होध (होह =भवथ ); परित्तायध (परित्तायह = परित्रायध्वे )।
(११) शौरसेनी में भू धातु के हकार का भ आदेश विकल्प से होता है । जैसे:-भोदि, होदि (भवति)।
१. मध्यम पुरुष के बहुवचन में इत्था और ह अथवा त्य होते हैं। देइस पुस्तक के छठे अध्याय के वर्तमानकाल के प्रत्ययों में मध्यम पुरुष तथा हेम० ३. १४३.